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________________ 15 कंद सायकाक्ष खेमंत; निर्वाणिक रविराज प्रथम, नमतां दुःखनो अंत. ११ पुरुरवास अवबोधविक्रममेंद्र, सुशांति हरदेव नंदिकेश; महा मृगेंद्र अशोचित धर्मेन्द्र, संभारो नाम निवेश. १२ अश्ववृंद कुटीलक वर्धमान, नंदिकेश धर्मचक्र विवेक; कलापक विसोम आरणनाथ, समर्या गुण अनेक. १३ त्रण पदे त्रण चोवीशीओ, पदे पदे कोठे जाण; चोथा पदमां भावना, आराधो गुण खाण. १४ दोढसो कल्याणक तणो, गुणणो ओ मनोहार; चित्त आणीने आदरो, जिम पामो भवपार. १५ जिनवर गुणमाला, पुन्यनी ओ प्रवाला; जे शिवसुख रसाला, पामीये सुविशाला; जिन उत्तम थुणीजे, पाद तेहना नमीजे, जिन रुप समरीजे, शिवलक्ष्मी वरीजे. १६ (34) शासन नायक वीरजी, प्रभु केवल पायो; संघ चतुर्विध स्थापवा, महसेन वन आयो. १ माधव सित अकादशी, सोमल द्विज यज्ञ; इन्द्र भूति आदे मल्या, अकादश विज्ञ. २ अकादशसें चउ गुणा, तेहनो परिवार; वेद अर्थ अवळो करे, मन अभिमान अपार. ३ जीवादिक संशय हरी ओ, अकादश गणधार; वीरे थाप्या वंदीओ, जिन शासन जयकार. ४ मल्लि जन्म अर मल्लि पास, वर चरण विलासी; ऋषभ अजित सुमति नमी, मल्लि घन घाति विनाशी. ५ पद्म प्रभ शिव वास पास, भय भवना तोडी; अकादशी दिन आपणी, ऋद्धि सघली जोडी. ६ दश क्षेत्रे त्रिहुं काळना, त्रणसें कल्याण; वर्ष अग्यार अकादशी, आराधो वरनाण. ७ अगीयार अंग लखावीओ, अकादश पाठा; चाबकी ठवणी पुंजणी, मशी कागल ने काठां. ८ अग्यार अव्रत छंडवाओ, वहो पडिमा अग्यार; क्षमाविजय जिन शासने, सफल करो अवतार. ६ (35) आज ओच्छव थयो मुजघरे, एकादशी मंडाण, श्रीजिननां त्रणशेभलां, कल्याणक घरजाण ॥१॥ सुरतरुं सुरमणि सुरघट, कल्पवल्ली फली माहरे, एकादशी आराधतां, बोधिबीज चित्तठारे ॥२॥ नेमि जिनेश्वर पूजताए, पहोंचे मननां कोड, ज्ञानविमल गुणथी लहो, प्रणमो बेकरजोड ॥३॥
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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