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________________ 537 मज्जन करतो देखी, कंबल संबल निवारे जी. ।।७।। धर्माचार्य नामे मंखली, पुत्रं परिगल ज्वाला जी; तेजो लेश्या मूकी प्रभुने, तेहने जिवित दान आल्यां जी. ॥८॥ वासुदेव भवें पूतना राणी, व्यंतरी तापस रुपे जी; जटा भरी जल छांटे प्रभुने, तो पण ध्यान स्वरुपे जी. ॥६॥ इंद्र प्रशंसा अण मानते संगमें, सुरे बहु दुःख दीधां जी; लेक रात्रीमा वीस उपसर्ग, कठोर निठोर तेणे कीधा जी. ॥१०॥ छमासवाडा पूंठे पडियो, आहार असुझतो करतो जी; निश्चल ध्यान निहाली प्रभुनु, नाठो कर्मथी डरतो जी. ॥११॥ हजी कर्म अघोर ते जाणी, मने अभीग्रह धारे जी; चंदन बाला अडदने बाकुले, षट्मासी तप पारे जी. ॥१२॥ पूरव भव वैरी गोवाले, काने खीला ठोक्या जी; खरक वैयें खेंची काढ्या, इणीपेरें सहु कर्म रोकयां जी. ॥१३॥ बार वर्ष सहेतां इम परिसह, वैशाख शुदि दिन दशमी जी; केवल ज्ञान उपन्यु प्रभुने, वारी चिहुं गति विषमी जी. ॥१४॥ समोसरण तिहां देवे रचियुं, बेठा त्रिभुवन इश जी; शोभिता अतिशय चोत्रिशें, वाणी गुण पांत्रीश जी. ।१५।। गौतम प्रमुख अकादश गणधर, चौद सहस मुनिराया जी; साधवी छत्रीस सहस अनोपम, दीठे दुर्गति जाय जी. ॥१६॥ अक लाख ने सहस ओगणसाठ, श्रावक समकित धारी जी; त्रण लाख ने सहस अढारशें, श्राविका सोहे सारीजी. ॥१७॥ स्वामी चउविह संघ अनुक्रमे, पावा पुरी पाय धारे जी; कार्तिक वदि अमावस्या दिवसे, पहोता मुक्ति मोझार जी. ॥१८॥ पर्व दीवाली तिहांथी प्रगट्युं, कीधो दीप उद्योत जी; राय मलीने तिणे प्रभाते, गौतम केवल होत जी. ॥१६॥ ते श्री गौतम नाम जपंतां, होवे मंगल मालजी; वीर मुक्ते गयाथी नवशें, अंशी वरसे सिद्धांत जी. ।२०।। श्री क्षमा विजय शिष्य बुध माणेक कहे, सांभलो श्रोता सुजाण जी; (कल्पसूत्रनी पुस्तक रचना देवर्धि कीधी जी) चरम जिणेसर तव मे चरित्रे, मूक्युं छठु वखाण जी. ॥२१॥ (46) षष्ठ द्वितीय व्याख्यान सज्झाय काशी देश बनारसी सुखकारी रे, अश्वसेन राजन प्रभु उपकारी रे; पट्टराणी वामा सती सु० रुपे रंभा समान प्रभु० ॥१॥ चौद सुपन सुचित भला, स० जन्म्या पासकुमार; प्रभु० पोष वदी दशमी दिने, सु० सुर करे
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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