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________________ 528 नंदन गजुवे भरशे लाडु मोती चुर; नंदन मुखडा जोईने लेशे मामी भामणां रे; नंदन मामी कहेशे जीवो सुख भरपूर. हालो० ॥१०॥ नंदन नवला चेडा मामानी साते सती रे; मारी भत्रीजी ने बेन तमारी नंद, ते पण गुंजे भरवा लाखण साइ लावशे रे, तुमने जोइ जोइ होशे अधिको परमानंद. हालो० ॥११॥ रमवा काजे लावशे लाख टकानो घुघरो रे, वळी शुडा मेना पोपट ने गजराज; सारस हंस कोयल तीतर नेवली मोरजी रे; मामी लावशे रमवा नंद तमारे काज. हालो० ॥१२॥ छप्पन कुमरी अमरी जलकलशे नवरावीयारे; नंदन तमने अमने केली घरनी मांहे; फुलनी वृष्टि कीधी योजन ओकने मांडले; बहु चिरंजीवो आशीष दीधी तुमने त्यांही. हालो० ॥१३॥ तमने मेरुगिरि पर सुरपतिओ नवरावीया रे; नीरखी नीरखी हरखी सुकृत लाभ कमाय; मुखडा उपर वारुं कोटी कोटी चंद्रमां; वली तनपर वारु ग्रह गणनो समुदाय. हालो० ॥१४।। नंदन नवला भणवा निशाले पण मूकशुं रे; गजपर अंबाडी बेसाडी मोटे साज; पसली भरशुं श्रीफळ फोफल नागर वेलशुं रे; पेंडा सुखडी ले| नीशालीयाने काज. हालो० ॥१५॥ नंदन नवला महोटा थाशो ने परणावशुं रे; वहुवर सरखी जोडी लावशुं राजकुमार; नंदन सरखा वेवाइ वेवाणुं ने पधरावशुं रे, वरवहु पोखी ले| जोइ जोइने देदार. हालो० ॥१६॥ पीयर सासर माहरा बेहु पख नंदन उजला रे; मारी कुखे आव्या तात पनोता नंद; माहरे आंगण वुठा अमृत दूधे मेहुला रे; माहरे आंगण फलीया सुरतरु सुखना कंद. हालो० ॥१७|| इणिपरे गायुं माता त्रिशला सुतनुं पारणुं रे; जेकोई गाशे लेशे पुत्र तणा साम्राज; बीली मोरा नगरे वर्णव्युं वीरनुं हालरूं रे; जय जय मंगल होजो दीपविजय कविराज. हालो० ॥१८॥ (34) पर्युषण पर्व- स्तवन (तर्ज एक दिन पुंडरिक गणधरु रे) ___ पर्व पर्युषण आवीया रे, लाल-हैयामां हरख न माय रे सलुणा, त्रिकरण योगे सेवता रे लाल, पातक दूरे पलाय रे. सलुणा० १ पर्व आराधन कीजीए रे लाल, पामीये भवोदधि पार रे, सलुणा, नंदिवर ओच्छव करे रे लाल, सुर सफल अवतार रे. सलुणा० पर्व० २ जीव अमारी पलावीए रे लाल आरंभनो करी त्याग रे सलुणा० नरनारी शुद्ध
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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