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________________ 508 त्रण तत्त्व चित्त मांहि भाविया ए.॥६॥ तीर्थंकर गोत्रदल मेलव्यां ए, तिणे भाव चडती पुण्य केलव्या ए; प्रथम भव एह मने धारीए ए, बीजे भव सौधर्म धारीए ए.।।१०।। तिहांथी चवी भरतराय सुत सही ए, दादा ऋषभजी हाथे दीक्षा लही ए; दोहितुं चारित्र परिहरि ए, त्रिदंडियावेश सोहिलो धारि ए.॥११॥ ऋषभ वचने भरत भूपति ए, आवी वंदियो मरीचि तापस मति ए; चक्री वासुदेव चरम जिनवरु ए, पदवी त्रण पामशो सुखकरूं ए.॥१२॥ सांभली वात मन मद वस्यो ए, घणुं नाचतो कुदतो अतिहस्यो ए; करम वात कहीए कीसी ए, जुओ जाणतो कर्म बांधे रिसि ए.॥१३।। पूछतां कपिल आगळ कहीए, प्रभु पासे इहां धरम सरीखो सही ए; दुष्ट भाषित वचन रस केलव्यु ए, तिहां मदवेश करमदल मेलव्युं ए.।।१४।। सागर कोडाकोडी नीच कुले ए, मन गर्वथी तेह भवभव रुले ए, त्रीजो भव मरिची पुरण हुवो ए, चवे सुरलोके चोथे, भवे ए.।।१५।। कोल्लाग पुरे कौशिक बंभणो ए, ऐसी पुरव लख जीवीज भणो ए; त्रिदंडी पंचम भव ए गणो ए, छठे भवे इशान अमर सुणो ए.।।१६।। (ढा. २) थूलपुर बंभण थाय रे, बहोतेर लाख पूरव आय रे; सातमो भव पुष्पमित्र नाम रे, तापस मुनि अभिराम रे. ॥१७।। आठमे भवे देवता थाय रे, सुधर्मे मध्य आय रे; अग्निदत्त ब्राह्मण हुवो रे, चइत्र गामे नवमे भवे गयो रे. ॥१८॥ चोसठ लाख पूरव पाली रे, तापस दीक्षा संभाली रे; दशमे भवे देवता होय रे, बीजे देवलोके जोय रे. ॥१६॥ इग्यारमो भव मंदिर गामे रे, ब्राह्मण थया अग्नि नामे रे; छप्पन लाख पूरव आय रे, अंते ते तापस थाय रे. ॥२०॥ त्रीजे देवलोके देव रे, बारमे भव ततखेव रे; श्वेतांबीये भाररद्वज नाम रे, ब्राह्मण थया तेरमे ठामे रे. ।।२१।। जीवी पूरव चुमालीस लाख रे, तापसनो धर्म राखे रे; चोथे देवलोके जाय रे, चौदमे भवे मध्यम आय रे. ।।२२।। (ढा. ३) (राग :--महावीर तारा मारगथी अमे) तिहांथी घणां भवमां भमी, राजगृही नगरी उपनो रे; चोत्रीस लाख पूरव आयु, थावर विप्र संपन्नो रे. ॥२३।। पंदरमो भव थुणीओ, छेहडे तापस योग रे; भव सोलमें पांचमें, सुरलोके देवना भोग रे. ॥२४॥ संसारमाही घणुं भमी, राजगृही नगरी
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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