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________________ 493 (ढा. ८) (राग : शेजयगिरिनां सोयडारे) नेवू सहस संप्रति नृपे रे, उद्धर्या जैन प्रासाद; छत्रीस सहस नवा कर्या रे, निज आयु दिनवाद रे, मनने मोदे रे, महोत्सव मोटे रे, पूजो पूजो महोदयपर्व. ॥१॥ असंख्य भरतना पाटवी रे, अछाई धर्मना कामी; सिद्धगिरिओ शिवपुरी वर्या रे, अजरामर शुभ ठामने रे. मनने० ॥२॥ युग प्रधान पूरव धणी रे, वयर स्वामी गणधार; निज पितु मित्र पासे जईर, याच्यां फुल तैयार रे. मनने० ॥३।। वीश लाख फुल लेइने रे, आव्या गिरिहिमवंत; श्रीदेवी हाथे लीया रे, महा कमल गुणवंत रे. मनने० ॥४।। पछी जिनरागीने सोपीया रे, सुभिक्षनगरी मझार; सुगत मत उच्छेदिने रे, शासन शोभा अपार रे. मनने० ।।५।। (ढा. ६) (राग : मेंदीने वावी मांडवे रे) प्रतिहार्य अड पामीले रे, सिद्ध प्रभुना गुण आठ, हरख धरी सेवीये अ. ज्ञान दर्शन चारित्रनां ओ, आठ आचारना पाठ. ह० सेवो सेवो पर्व महंत. ह० ॥१॥ पवयण माता सिद्धिनुंओ, बुद्धिगुणा अडदृष्टि; ह० गणी संपदा अड संपदाओ, आठमी गति दीओ पुष्टि. ह० ॥२॥ आठ कर्म आठ दोषने अ, अडविध मद परमाद; ह० परिहरी अड विध कारण भजीओ, आठ प्रभावक वाद ह० ॥३॥ गुर्जर दिल्ही देशनां , अकबर शाह सुलतान; ह० हीरजी गुरूना वयणथी अ, अमारी पडह वजाव. ह० ॥४॥ सेनसूरि तपगच्छ मणिओ, तिलक आणंद मुणिंद; ह० राज्यमान रिद्धि लहे , सौभाग्य लक्ष्मी सुरींद. ह० ॥५॥ सेवो सेवो पर्व महंत ह० पूजो जिनपद अरविंद; ह० पुण्य पर्व सुखकंद ह० प्रगटे परमानंद ह० ओम कहे लक्ष्मी सुरींद हर्ष० ॥६॥ (कळश) अम पार्थ प्रभुनो पसाय पामी, नामे अठ्ठाइनां गुण कह्या; भवि जीव साधो, नित्य आराधो, आत्म धर्मे उमहया. ॥१॥ संवत जिन अतिशय वसु शशी, चैत्री पुनमे ध्याईया; सौभाग्य सूरि शिष्य, लक्ष्मी सूरि बहु, संघ मंगल पाईया. ॥२॥ (26) श्री महावीर पंच कल्याणकनुं चोढाळियुं ढाळ ४ (दुहा) प्रेमे प्रणमुं सरस्वति, मांगु अविचल वाण; वीर तणा गुण गायशुं, पंच कल्याणक जाण. ।।१।। गुण गाता जिनजी तणा, लहीजे भवनो पार; सुख समाधि होय जीवने, सुणजो सहु नरनार. ॥२॥
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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