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________________ 472 जोर रे, जीव करमवश करे जुदा, उपजे तीन बीज ठोर रे, श्री जिन० ५ छेदन भेदन ताडना, भूख तृषापछी त्रास रे, रोम रोम पीडा करे, परधामीनो त्रास रे, श्री जिन० ६ रात दिवस क्षेत्र वेदना, तिलभर नहि तिहां सुख रे, कीधा कर्म तिहां भोगवे, पामे जीव बहु दुःख रे, श्री जिन० ७ अकदिननी नोकारसी, जे करे भाव विशुद्ध रे, सो वर्ष नरकनुं आवखुं, दुर करे ज्ञानी बुद्ध रे, श्री जिन०८ नित्य करे नवकारसी, ते नर नरके न जायरे? न रहे पाप वली पाछला, निर्मल होवेजी काय रे, श्री जिन०६ (ढा. २ ) ( राग : मेरा जीवन कोरा कागज) सुण गौतम पोरसी कीयां, महा मोटो फल होय, भावशुं जे पोरसी करे, दुर्गती छेदे रे सोय, सुण० १ नरक मांहे नारकी, वरस अक हजार रे, कर्म खपावे नरकमां, करतां बहुं पोकार रे, सुण० २ दुर्गति मांहे नारकी, दश हजार परिणाम रे, नरकनुं आयु खिण अकमें, साढपोरसी करे हाण, सुण० ३. पुरिमुड्ढ करतां जीवडां, नरके ते नहि जाय, लाख वर्ष कर्मना कटे, पूरिमट करत खपाय, सुण० ४ लाख वरस दश नारकी, पामे दुःख अनंत, अटलां कर्म ओकासणे, दूरी करे मनखंत सुण० ५ ओक कोडी वरसा लगे, कर्म खपावे रे जीव, निवि करतां भावशुं, दुर्गति हणे सदीव, सुण० ६ दश कोडी जीव नरकमें, जेटलो करे कर्म दूर, तेटलो अकल ठाणमें, करे सही चकचुर, सुण० ७ दत्ति करतां प्राणियां, सो कोडी परिणाम, अटला वरस दुर्गति तणां, छेदे चतुर सुजाण, सुण०८ आंबिलनो फल बहु कह्यो, कोडी दश हजार, कर्म खपावे इणि परे, भावे आंबिल कर, सुण० ६ कोडी हजार दश वर्षसही, दुःख सहे नरक मोझार, उपवास करे अक भावशुं, पामे मुक्ति दुवार, सुण० १० ( ढा. ३) ( राग : अमका ते वादल उगीयो सूरे) लाख कोडी वरसां लगे, नरके करतां बहु रीव, छठ्ठनो तप करतां थका, नरक निवारे जीव, सुण गौतम गणधर सही. १ नरक विषे कोडी लाखही, जीव लहे तीहां अति दुःख, दुःख अठ्ठम तप हुंती, दूर करे पामे सुख. सुण० २ छेदन भेदन नारकी, कोडा कोडी वरसा सुधी, दुर्गति कर्मने परिहरे, दशमे अटलो फल होय. सुण० ३ नित्य फासुजल पिवतां, कोडा कोडी वरसना पाप, करे दुर क्षण अकमां, जीव निश्चये निरधार. सुण० ४ अ तो वलीय विशेष फल
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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