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________________ 463 विशोम प्रणमीजे जी, सातमा श्री अरण्य जिन ध्याता, जन्मनो लाहो लीजेजी. २ श्री विजय प्रभ सूरीश्वर राजे, दिन दिन अधिक जगीसजी, खंभ नयरमां रही चोमासुं, संवत सत्तर बत्रीसेंजी, दोढसो कल्याणकनुं गुणगुं, इम में पूरण कीधुंजी, दुःख चुरण दिवाली दिवसे, मन वांछित फल लीधुंजी, ३ श्री कल्याणविजय वर वाचक, वादी मातंगज सिंहोजी, तास शिष्य श्री लाभ विजय बुध, पंडित मांही लिहोजी, तास शिष्य श्री जितविजय बुध, श्री नय विजय सौभागीजी, वाचक जस विजये तस शिष्ये, थुणिया जिन वडभागीजी. ४ ओ गणणुं जे कंठे करशे, ते शिव रमणी वरशेजी, तरशे भव हरसे सवि पातिक, निज आतम उद्धरशेजी, बार ढाल जे नित समरसे, उचित काज आचरशेजी, सुकृत सुहोदय सुजस महोदय, लीला ते आदरशेजी. ५ (कळश) बार ढाल रसाल बारह, भावना तरु मंजरी, वर बार अंग विवेक पल्लव, बार व्रत शोभा करी, इम बार तप विध सार साधन, ध्यान जिन गुण अनुसरी, श्री नय विजय बुध चरण सेवक, जस विजय जयश्री लही. (15) मौन एकादशीनी ढाळो-४ (राग : नणदल सिद्धारथ सुत) __(ढाळ १) जगपति नायक नेमि जिणंद, द्वारिका नगरी समोसर्या, जगपति वांदवा कृष्ण नरिंद, जादव क्रोडरों परिवर्या....१ जगपति धी गुण फूल अमूल, भक्ति गुणे माळा रची, जगपति पूजी पूछे कृष्ण, क्षायिक समकित शिवरूचि...२ जगपति चारित्र धर्म अशक्त, रक्त आरंभ परिग्रहे, जगपति मुज आतम उद्धार, कारण तुम विण कोण कहे...३ जगपति तुम सरिखो मुज नाथ, माथे गाजे गुण निलो, जगपति कोई उपाय बताव, जेम करे शिववधूकंतलो....४ नरपति उज्वल मागसर मास, आराधो एकादशी, नरपति एकसोने पचास, कल्याणक तिथी उल्लर्सी...५ नरपति दशक्षेत्रे त्रणकाल चोविशी त्रीसे मली, नरपति नेवू जिननां कल्याण विवरी कहुं आगळ वळी....६ नरपति अर दीक्षा नमीनाण, मल्ली जन्म व्रत केवली, नरपति वर्तमान चोवीसी, माहे कल्याण कह्यां वळी....७ नरपति मौनपणे उपवास, दोढसो जपमाळा गणो, नरपति मन वच काया पवित्र, चरित्र सुणो सुव्रत तणो....८ नरपति दाहिण धातकी खंड, पश्चिम दिशी इक्षुकारथी, नरपति विजय पाटण अभिधान, साचो नृप प्रजापाळथी....६ नरपति नारी चंद्रावती
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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