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________________ (3) बीजरीज करी सींचीये, प्रथम तिथिमां एह, चंद्रकला उदये वधे, तेम पुण्योदय रेह ॥१॥ अभिनंदन सुमतिप्रभु, दशमा शीतलनाथ, वासुपूज्य अरनाथजी, मुक्तिपुरीना साथ ॥२॥ इत्यादिक जिनवरतणां, जन्म नाण निर्वाण, बीजतणे दिनवंदता, पामो क्रोड कल्याण ॥३॥ दुविह धर्मने सेवीये, निश्चयने व्यवहार, आगम नोआगमतणो, भावो तत्त्व विचार ॥४॥ बीजे ठाण वर्णव्यां, दोय दोय ए भेद, बीजतणे दिन मुनिवरां, ध्याता ध्यान दुभेद ॥५॥ अंग उपांगे वर्णव्यां, जीव अजीव पुण्यपाप, बंध मोक्ष दुग वर्णव्यो, भव्य अभव्यनी छाप ॥६॥ बहु श्रुत चरण कमल नमी, संषय करीये दूर, गौतम प्रश्नोत्तर करेए, श्री शुभवीर हजूर ॥७॥ (4) सुंदर समकित क्षेत्रमां, बीजक दिने बीज। किरिया- खेतर करी, वावो राखी रीज॥१॥ संतोषे शोधन करी, नवविध संवर वाडी, समपाणीथी सिंचता, ऊगे अविचलझाडी॥२॥ मोक्षतणां फल तेहनां, खावोखटऋतुखंते। कर्मरोग भवदुःख मीटे, पामे शिवसुखशांते॥३॥ जीव सकल बे भेदथी, मुक्त अने संसारी, सकषाई अकषाईया, आहारी अणाहारी॥४॥ इन्द्रिय सहित रहित वली, वेद अवेद विलासी भासक अणभासका, बे उत्पत्ति भवराशी ॥५॥ बे सूरज बे चंद्रमां, जंबूद्विपे जाणो, बीजतिथीमां बांधीयां, पामेपरभवटाणो,॥६।। उदयसोमसूरिनमेए, सहुजग सुखने काज, तास विमाने तेणे दिने, वंदो श्रीजिनराज ॥७॥ (5) श्री सीमंधर स्वामि चैत्यवंदनो सीमंधर जिन विचरता, सोहे विजय मोझार; समवसरण रचे देवता सोहे पर्षदा बार. १ नवतत्वनी दीये देशना, सांभळे सुरनर कोडी; षट् द्रव्यादिक वर्णवे, ले समकित करजोडी. २ इहां थकी जिन वेगळा, सहस तेवीस सत अक; सत्तावन जोजन वळी, सत्तर कळा सुविशेष. ३ द्रव्य थकी जिन वेगळा, भावथी हृदय मोझार; त्रिहुं काळे वंदन करूं, थास माहे सो
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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