SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 453 ।।१०।। वज्रनाभ जीव सुर आवीयो, तास कुंखे उत्पन्न; सुवर्णबाहु अभिधान ठवीयुं, तस उपन्युं चक्ररत्न। गुण० ॥११॥ षटखंड तेणे करी निसाध्या, एक दिन गोखे बेठ; देवतणा गण जातां देखी, पूर्वभव तीणे दीठ। गुण० ॥१२।। जिनवर वांदि वाणी नीसुणी, उपन्यो मन वैराग; १ दिक्षा लई विश स्थानकने, आराध्या निरागी। गुण० ॥१३॥ गिरिशिखर जई काउसग्ग रहीओ, हवे जुओ भील अबीह; २ सातमी नरक थकी निसरीयो, गीर गुहा हुओ सिंह। गुण० ॥१४॥ पुरव वैरी मुनिवर हणीओ, दशमे कल्पे जाय; ३ सिंह गयो वळी चोथी नरके, नवमो भव इम थाय। गुण० ॥१५॥ (राग : धनद ताणे आदेशथी) (ढाळ ३) दशमो भव जिनवर तणो मनरंगीला, भावेसुणो नरनार लाल। मन० ५ जंबुद्विप सोहामणो,। मन० सघला द्विप मोझार लाल । मन० १ मन रंगीला निरंगीला मन० पासकुमार पुण्यवंत लाल | मन०१ दाहिण भरत वखाणीये। मन० नयरी वाणारसी सार लाल। मन० १ अश्वसेन नृप जाणीए, मन० वामादेवी उर हार लाल। मन० २ दशमां कल्पथकी आवी, मन० आउ पुरू वीश सागर लाल। मन० चैत्रासीत चोथे च्यवी, मन० वामा कुखे अवतार। लाल। मन० ३ चौद सुपन देखी राणी, मन० हर्षे विनवे राय। लाल | मन० सुपन विचार सुंदर जाणी, मन० राय मन हर्ष न माय। लाल। मन० ४ सुपन पाठक पंडित आणी। मन० पूछे स्वप्न विचार। लाल | मन० सुत होशे त्रिभुवन धणी। मन० सकल लोक आधार। लाल। मन० ५। (राग : सकल कुशल कमलानुं मंदिर) (ढाळ ४) पोष वदी दशमी दिन भली रे, जन्म्या पासजिणंद, छप्पन दिशीकुमरी करे रे, सुति करम आणंद रे, भविका पूजो पास जिणंद, दीठे परमानंदरे भविका, जेहने सेवे सुरनर इन्द्र रे। भविका० १ सोहमपति तिहा आवीयो रे, लाग्यो मायने पाय; रत्नकुक्षी तुं धारणी रे, तें जण्यो त्रिभुवनराय रे। भ० २ मेरू जइ नवरावभुं रे, करशुं महोत्सव काज, तुं मत बीहे मावडी रे, आणी आपशुं आज रे। भ० ३ इम कही मेरू पधरावीयाजी, पंच रूप करी आप; चोसठ इन्द्र नवरावीयांजी, टाव्या पापना
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy