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________________ 448 समवसरण इन्द्रे रच्युं, जीहो सुर असुरनो वृंद. जगत सहु, वंदो वीर जिणंद...।।१।। जीहो देवरचित सिंहासने, जीहो बेठा श्री वर्द्धमान, जीहो अष्टप्रातिहार ज शोभता; जीहो भामंडळ असमान, जगत० ॥२॥ जीहो अनंत गुणे जिनराजजी; जीहो परउपकारी प्रधान; जीहो करुणां सिंधु मनोहरु, हो त्रिलोके जिनभाण, जगत० ||३|| जीहो चोत्रीश अतिशय विराजता, वाणी गुण पांीश, जीहो बार पर्षदा भावशुं, जीहो भक्ते नमावे शीष, जगत || ४ || जीहो मधुर ध्वनि दीओ देशना, जीहो जिम अषाढो रे मेह, जीहो अष्टमी महिमा वर्णवे, जीहो जगबंधु कहे तेह, जगत० ॥ ५१ (ढा. ३) रुडी ने रढीयाळी रे, प्रभु तारी देशना रे; ते तो अक जोजन लगे संभळाय, त्रीगडे विराजित जिन दिओ देशना रे, श्रेणिक वंदे प्रभुना पाय अष्टमी महिमा कहो कृपा करी रे, पुछे गोयम श्री गणधार, अष्टमी आराधन फळ सिद्धनुं रे. ॥१॥ वीर कहे तपथी महिमा अहनो रे, श्री ऋषभनुं जन्म कल्याण, ऋषभ चारित्र होये निर्मळु रे, श्री अजितनुं जन्म कल्याण. अष्टमी० ॥ २॥ संभव च्यवन त्रीजा जिनेश्वरु रे, श्री अभिनंदन निर्वाण, सुमति जन्म सूपार्श्व च्यवन छे रे, सुविधि नमि जन्म कल्याण. अष्टमी० ||३|| मुनिसुव्रत जन्म अति गुणनिधि रे, नेमि शिवपद लघुं सार, पार्श्वनाथ निर्वाण मनोहरु रे, अ तिथि परम आधार, अष्टमी० ॥४॥ उत्तम गणधर महिमा सांभळी रे, अष्टमी छे तिथि प्रमाण, मंगळ आठ तणी गुण मालिकारे, तस घर शिवकमळा प्रधान. अष्टमी० ||५|| (ढा. ४) काउसग्गनी नियुक्ति से भांखे, महानिशीथ सूत्र रे; ऋषभवंश . दृढ वीरजी आराधी, शिव सुख पामे पवित्र रे, श्री जिनराज जगत उपकारी.....।।१।। अ तिथि महिमा वीर प्रकाशे; भविक जीवने भासे रे; शासन तारुं अविचळ राजे, दिन दिन दोलत वासे रे; श्री० ॥२॥ त्रिशला नंदन दोष निकंदन, कर्मशत्रुने जीत्या रे, तीर्थंकर महंत मनोहर, दोष अढार निवर्त्यां रे श्री० ||३|| मन- मधुकर वर पदकज लीनो, हरखी निरखी प्रभु ध्यावुं रे; शिव कमला श्युं दीओ प्रभुजी, करुणानंद पद पाउं रे श्री० ॥४॥ वृक्ष अशोक सुर कुसुमनी वृष्टि, चामर छत्र विराजे रे, आसन भामंडळ जिन दिपे, दुंदुभी अंबर गाजे रे, श्री० ॥५॥ खंभात बंदर अति मनोहर, जिन
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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