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________________ 444 कला गुण खाणी रे, श्रीजि० ॥२॥ आठ वरसनो जब थयो, तव मूक्यो निशाळ रे, अक्षर मात्र न आवडे, जिम जलमां सेवाल रे, श्रीजि०।।३।। अनुक्रमे योवन पामीयो, विणस्युं कोढे देही रे, रतिनवि पामे केहथी, न धरे कांइ सनेहोरे श्रीजि०॥४॥ हवे तिणहीजपुरमा वसे, सिंहदास जिन धर्मी रे, कोटि ध्वज व्यवहारीया, संघ मुख्य शुभ कर्मी रे॥५॥ कर्पूर तिलका तस गेहीनी, गुण मंजरी तस बेटी रे, वचने मूंगी वरतर्नु, रोग तणी छे पेटी रे श्रीजि०॥६॥ सोलवरसनी सा थइ, पण तस कोइन इच्छे रे, मात पिता परिजन सर्वे, तस दुःखे दुःखिया होवे रे श्रीजि०७|| (दुहो) एणे समये तव एकदा, विजयसेन गच्छनाथ, चउनाणी गुरू गुण भाँ, मुनि परिकरे सनाथ, नागरजन सवि आविया, सुत संयुत नर नाथ, सिंहदास तनया सहीत, वंदे श्री मुनिनाथ ___ (राग : अंधारानो दीवडो) (ढाळ २) कलेशनाशिनी देशना (हित आणी,) भाखे श्री गुरुराज सुणो भविप्राणी ज्ञान आराधना साचवो, हित० श्रवण पठन ने काज सुणो० ।।१।। ज्ञान विराधे जे मने, हि० ते परभवे मनहिण सु० वचने जेह विराधता, हि० ते मूंगा दुःख दिण, सु०॥२॥ कायाथी जे विराधतां, हि० तस कुष्टादिक रोग सु० त्रिविधे विराधतां ज्ञाननी, हि० जे मुरख करे भोग सु०॥३॥ पुत्र कलत्र धन मित्रनो हि० तेहनो होये नाश सु० आधि व्याधि तस परभवे, हि० निर्विवेक तनुं नाश सु०॥४॥ सिंहदास एम सांभळी हि० पूछे उलट आणी रे सु० कहो भगवन् किण कर्मथी, हि० मुज तनया गुण हीण सु०॥५॥ गुरू कहे एह संसारमां, हि० सुख दुःख कर्मने हाथ, सु० कर्म थकी बलीया नहि, हि० चक्री हलधर साथ, सु०॥६।। एहनो पूरव भव सुणोहि० हृदय विचारो हेव, सु० कर्म तणी गतिएहवीहि० गुरू भाखे तत खेव, सु०॥७॥ (ढाळ ३) धातकी खंडे भरतमां मनहर खेटक नाम नरराज, नयरमांहि व्यवहारीओ, धनवंत वसुदेव नाम नरराज, पूरव भव तुमे सांभळो ॥१॥ सुंदरी नामे गेहिनी, तस सुत पंच रसाल नरराज, आस पाल पहेलो
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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