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________________ 432 हो के, ते पहेलां अमचा,...॥५॥ अम वात सुणीने होके, सुंदरी क्रोधे चडी, प्रीतम साथे हो के, प्रेमदा अतिही वढी, कंते मारी हो के, तिहांथी काळ करी, तुम बेटी हो के, थई गुणमंजरी...॥६॥ पूर्व भवे अणे हो के, ज्ञान विराधीउं, पुस्तक बाळी हो के, कर्म जे बांधी उ, उदये आव्युं हो के, देहे रोग थयो, वचने मुंगी हो के, ओ फळ तास लह्यो...।७।। ढा. ३ निज पूरव भव सांभळी, गुण मंजरी ओ त्यांहि ललना. जाति समरण पामीयु; गुरुने कहे उत्साह ललना, भविका ज्ञान अभ्यासीओ...॥१॥ ज्ञान भलो गुरुजी तणो, गुण मंजरी कहे ओम ललना; शेठ पूछे गुरुने तिहां, रोग जावे हवे केम ललना...॥२॥ गुरु कहे हवे विधि सांभळो, जे कह्यो, शास्त्र मोझार, कार्तिक सुदि दिन पंचमी, पुस्तक आगळ सार ललना...॥३।। दीवो पंच दीवेट तणो, कीजीओ स्वस्तिक सार ल० नमो नाणस्स गुणगुं गुणो चोविहार उपवास ललना...॥४॥ पडिक्कमणा दोय कीजीओ, देववंदन त्रण काळ ललना...पांच वरस पांच मासनी, किजीओ पंचमी सार ललना...॥५॥ तप उजमणुं पारणे, किजिओ विधिनो प्रपंच ललना...पुस्तक आगळ मुकवां सघळां वाना पांच, ललना...॥६॥ पुस्तक ठवणी पुंजणी, नवकारवाळी प्रत ललना, लेखण खडीया दाभडा, पाटी कवळी युक्त, ललना...॥७॥ धान्य फळादिक ढोईओ, कीजीओ ज्ञाननी भक्ति, ललना... उजमणं ओम कीजीओ, भावथी जेवी शक्ति, ललना...॥८॥ गुरुवाणी अम सांभळी पंचमी किधी तेह ललना, गुण मंजरी मुंगी टळी, निरोगी थई देह ललना...॥६॥ ढा. ४ राजा पूछे साधुने रे, वरदत्त कुमार ने अंग, कोढ रोग से कीम थयो रे, मुज भाखो भगवंत, सद्गुरुजी धन्य तमारु ज्ञान...॥१॥ गुरु कहे जंबुद्विपमां रे, भरते श्रीपुर गाम, वसुनामा व्यवहारीयो रे, दोय पुत्र तस नाम स०...॥२॥ वसुसारने वसुदेवजीरे, दीक्षा लीओ गुरु पास, लधु बंधव वासु देवने रे, पदवी दीओ गुरु तास स०...॥३॥ पंच सहस अणगारने रे, आचारज वसुदेव, शास्त्र भणावे खंतशं रे, नहीं आळस नित्य मेव...॥४॥ ओक दिन सूरि संथारीयारे, पूछे पद ओक साधु, अर्थ कहीयो तेहने रे, वळी आव्यो बीजो साधु स०...॥५॥ अम बहु मुनि पद पुछवारे, ओक आवे ओक
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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