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(14) श्री समवसरण, स्तवन आज गईती हुं समवसरणमां, वाणी सुधारस पीवा रे, पीता पीता रे मगन भर्यो रे, में तो अनुभव प्यालो पीधो रे ॥१॥ पहेले रे प्याले मुने समकित प्रगट्यों, दूसरे अज्ञानता मेली रे, तत्त्व तणा रे, प्यालो तीसरो पीधो, मारी कुमति गइ पीता पहेली रे ॥२॥ अजब अनोपम मूर्ति प्रभुजीनी, दीठडे मति थई रूडी रे, वासोधास तणो परिमल महेके, आवा चंपक केतकी फूली रे ॥३॥ प्रभुजीनी आगळ बार पर्षदा, मळ्या छे कोडाकोडी रे, चोसठ इन्द्र नमे शिरनामी, तो रह्या छे बे कर जोडी रे, ॥४॥ प्रभुजीनी वाणी सुणो भविकजन, तिर्यंच तणा दुःख हरवा रे, मृग पासे मृगराज बिराजे, तो वेर तणा नहि देवा रे ॥५॥ पंचम गतिना प्रथम जिनेश्वर, दातारी प्रभु दीठो रे, सुण रे बेनी एनी गति निहाली, तो मुज मन लागे मीठो रे ॥६॥ समवसरणमां प्रभुजी बिराजे, चिहुं दिशि महिमा छाजे, “रलविमळसूरि" रंगनी स्वामी, तो जीतना डंका प्रभु गाजे छे ।।७।।
(15) श्री सामान्य जिन स्तवन मन मोयुं, दिल मोहूं, दिल मोह्यु, चित्त मो, प्रभु गुण गानमा, . काल अनंत न जाण्यो जोतां, मोह सुराके पानमां, (२) प्रभु०॥१॥ एकेन्द्रिय बि-ति-चउरिन्द्रिमां, काळ गयो अज्ञानमां, हवे कोईक पून्योदय प्रगट्यो, आवी मिल्यो प्रभु ध्यानमां, प्रभु०॥२॥ अंतर भरम सवि गयो दूरे, तत्त्व सुधारस पानमां; प्रभु तुम दृष्टि भई मोहे उपर, अंतर आतम सानमां प्रभु०॥३॥ दरस सरस देख्यो जिनजी को, लगन लागी तारा ज्ञानमां, केवल कमला कंत कृपा निधि, औरन देख्यो जहानमां, प्रभु०॥४॥ अशरण. शरण जगत उपकारी, परमात्मा सुचि बानमां; जश कहे ध्यान प्रभुका ध्यावत, धारी नय प्रमाणमां प्रभु० मन मोयुं० ॥५॥
(16) सर्वसाधारण स्तवन (राग : साचो संगम प्रभु साथे)
सकल समता सुरलतानो, तुं ही अनोपम कंद रे; तुं ही कृपारस . कनककुंभो, तुंही जिणंद मुणिंद रे॥१॥ प्रभु तुंही तुंही तुंही तुंही, युही धरतां ध्यान रे; तुज स्वरूपी जे थया तेणे, लघु ताहरु तान रे।।प्रभु०॥२॥