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________________ 418 शय्यामां, थेई थेई नाटक सुणतां; तिहांपण तमे अने अमे बेहु साथे, जिन जन्म महोत्सव करता० अबोलडां०. ॥४॥ तिर्यच गतिमां सुखदुःख अनुभवतां, तिहां पण संग चलंता; अकदिन समवसरणमां आपण, जिन गुण अमृत पीता०...अबोलडां०. ॥५॥ ओक दिन तमे अने अमे बेहु साथे, वेलडीओ वळगी ने फरता; अकदिन बाळपणामां आपण, गेडीदडे नित्य रमता०..अबोलडां०. ॥६॥ तमे अने अमे बेहु सिद्धस्वरूपी ओवी कथा नित्य करता; ओक कुल गोत्र अकज ठेकाणे, ओक ज थाळीमां जमता०... अबोलडां०. ।।७। अक दिन हुं ठाकोर तमे चाकर सेवा माहरी करतां; आज तो आप बन्या जगठाकोर, सिद्धि वधुना पनोता०..अबोलडा०. ।।८।। काल अनंतनो स्नेह विसारी, काम कीधां मनगमतां; हवे अंतर केम कीधुं प्रभुजी, चौदराज लोक जई पहोंत्यां०...अबोलडां०. ॥६॥ दिपविजय कविराज प्रभुजी, जगतारण जगनेता; निज सेवकने यशपद दीजे, अनंत गुण गुणगणता...अबोलडां०. ।।१०।। __(5) श्री सामान्य जिन स्तवन श्री जिनराजने वंदना ओ, करतां लाभ अनंत तो स्वामी सोहामणा मे, भवोभवना दुःख भांजवा ओ, समरथ तुमे गुणवंत.. तोस्वामी० तारक तुम समको नहीं दीठो भूतले..स्वामी स्वामी तो, स्वा० ॥१॥ तुमे उपकार कर्या घणाए रे कहेतां न आवे पारतो स्वामी० आ संसार बिहामणोए, उतारो तस पारतो स्वामी० ॥२॥ जाणकने शुं याचिये रे, जाणे विण कहे वाततो. पण अम कंईमाग्या विना रे, नवि पीरसे निज मात तो..स्वामी० ॥३॥ ते माटे हुं विनवू ओ, आपो तुम पद सेव तो स्वामी ढील किसी करो मे घडीये, दायक छो स्वयमेव तो स्वामी० ॥४॥ ज्ञान विमल सुख संपदाओ. शुभ अनुबंधी जाणतो, अधिक हुवे हवे आजथीओ प्रभु तुम वचन प्रमाण तो..स्वामी० ॥५॥ (6) श्री सामान्य जिन स्तवन आज महारा प्रभुजी स्हामुं जुओने, सेवक कहीने बोलावो रे; जेटले हुं मनगमतुं पाम्यो, रुठडां बाल मनावो. मोरा सांइरे. आज० १ पतित पावन
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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