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________________ 414 कहते है तेरी रहेमत, दिनरात बरसती है, एक बुंदजो मिलजाये, (२) दिलकी कली खील जाये,॥२॥ महावीर इस जीवनकी, बस एक तमना है, : तुम सामने हो मेरे, (२) मेरा प्राण निकल जाये०,॥३।। महावीर तेरा सेवक हुँ, पल पल तेरा ध्यान धरूं, इस सेवककी अरजी है, (२) भव भ्रमण मिटाओ मेरे,-महावीर तेरे चरणो की०।४।। (50) श्री महावीर जिन स्तवन वीर प्रभुनुं ध्यान धरूं, वीरना चरणोमां वंदन करूं, वीरे बताव्यो मारग साचो, वीरछे तारणहारा, वीरनो महीमा अनुपम जगमां, वीर छे जगदाधारा, वीरने आतम अर्पण करूं ॥वीरना० ॥१॥ अर्जुनमाली शेठसुदर्शन, तारी चंदनबाला, आनंदने प्रभु शरणुं आव्युं, सौना प्रभु रखवाला, वीरना नामर्नु रटण करुं ॥वीरना० ॥२॥ संगमदेवे प्रभुने सताव्यां, प्रभुए समताधारी, भय भैरवमां प्रभुजीनिर्मल, कर्मसत्ता पणहारी, वीरनी वाणी- पान करुं ॥वीरना० ॥३॥ दर्शन जेनुं दुःख हरनारं, गुणसागर जिनदेवा, आनंदमंगल दाता प्रभुजी, मलजो भवोभव सेवा, वीरनुं एकज नाम खलं ॥वीरना० ॥४॥ वीरजिनेश्वरराया निराला, श्री गौतमगुरु प्यारा, श्रीहीरविजय गुरुशासन नायक, अक्षयपद अविकारा, अंतर आतम भाव धरूं ॥वीरना० ॥५॥ __(51) श्री महावीर जिन स्तवन एक वार वच्छ देश आवजो, जिणंदजी ! एक वार वच्छ देश आवजो; जयंतीने पाये नमावजो-जिणंदजी ! एकवार०॥ वळी समवसरण देखावजो-जिणंदजी एकवार०||१॥ समवशरण शोभा जे दीठी, क्षण क्षण सांभरी आवशे जिणंदजी; भूतल सुगंधी जल वरसावे, फूलना पगर भरावशेजिणंदजी०॥२॥ कनक रतननी पीठ करीने, त्रिगडानी शोभा रचावशे,जिणंदजी०; रूपानो गढने कनक कोसीसां, वचे वचे रतन जडावशे-- जिणंदजी०॥३॥ रयण गढे मणीना कोसीसां, झगमग ज्योति दीपावजोजिणंदजी०; चार दुवारे एंसी हजारा, शिव-सोपान चडावजो-- जिणंदजी०॥४॥ देव चारे कर आयुध धारी, द्वारे खडा करे चाकरी
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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