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________________ 409 विचरे महावीर स्वामी, जाशो मा प्रभु पंथ विकट छे, झेर भर्यो एक नाग निकट छे । हाथ जोडीने विनवे वीरने, लोक बधा भय पामी, महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी, (१) आवी गंध ज्यां मानवकेरी, डंख दीधो त्यां थईने वेरी, कंईक समज तुं, कंईक समज एम, कहे करूणा आणी महाभयंकर ए मारगमा विचरे महावीर स्वामी, (२) दूध वयुं ज्यां प्रभुना चरणे, चंडकोशीयो आव्यो शरणे, हिंसा अने अहिंसा वच्चे, लडाई भीषण जामी। महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी, (३) वेरथी वेर शर्म नहि जगमां प्रेमथी प्रेम वधे जीवनमां,। प्रेम धर्मनो परिचय पामी नाग रह्यो शीष नामी महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी० (४) (40) श्री महावीर जिन स्तवन तार हो तार प्रभु, मुज सेवक भणी, जगतमां एटलो सुजश लीजे; दास अवगुण भर्यो, जाणी पोता तणो, दयानिधि दीन पर दया कीजे ता० १. रागद्वेषे भर्यो, मोह वैरी नड्यो, लोकनी रीतीमां घjय रातो; क्रोधवश धमधम्यो, शुद्धगुण नवि रम्यो, भम्यो भवमांही हुं विषयमातो। ता० २. आदर्यो आचरण, लोक उपचारथी, शास्त्र अभ्यास पण कांई कीधो; शुद्ध श्रद्धान वली, आत्म अवलंबन विना, तेहवो कार्य तिणे को न सीधो। ता० ३. स्वामी दरिसण समो, निमित्त लही निर्मलो, जो उपादान ए शुचि न थाशे; दोष को वस्तुनो, अथवा उद्यम तणो, स्वामी सेवा सही निकट लाशे। ता० ४. स्वामी गुण ओळखी, स्वामीने जे भजे, दरिसण शुद्धता तेह पामे; ज्ञान चारित्र तप वीर्य उल्लासथी, कर्म झीपी वसे मुक्ति धामे ता० ५. जगत वत्सल महावीर जिनवर सुणी, चित्त प्रभु चरणने शरण वास्यो; तारजो बापजी बिरुद निज राखवा, दासनी सेवना रखे जोशो। ता० ६. वीनति मानजो, शक्ति ए आपजो, भाव स्याद्वादता शुद्ध भासे; साधी साधक दशा सिद्धता अनुभवी, 'देवचन्द्र' विमल प्रभुता प्रकाशे। (41) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : आजनो दिवस मने) वंदो वीर जिनेश्वर राया, त्रिशलादेवीना जाया रे, हरि लंछन कंचनवर्ण काया, अमर वधु हुलराया रे, वंदो० १. बालपणे सुरगिरि डोलाया, अहि
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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