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________________ 407 बिंछावू, नित नित विनतडी करीए वी० ॥१॥ स्वजन कुटुंब पुत्रादिक सहुने, हरखे इणीपरे उचरीये, वी० ॥२॥ जब आंगणे प्रभु वीर पधार्या, तव वत्स सन्मुख डग भरीये, वी० ॥३॥ सयणा सुणो प्रभु पडीलाभीजे, तो भवि भव सागर तरीये वी० ॥४॥ अप्रतिबध्धपणे प्रभु विरजी, घर घर भिक्षाए फरीए वी० ॥५॥ अभिनव शेठ तणे घर पारj, कीधुं फरता गोचरीये, वी० ॥६॥ भावना भावता जीरण शेठजी, देव दुंदुभि सुणी चित्त भरिये, वी० ॥७॥ बारमा कल्पनुं बांध्युं आयुष, जिन उत्तम वीर चित्त धरिये, वी० ॥८॥ तस पदपद्मनी सेवा करतां, स्हेजे शिव सुंदरी वरीये,... वीर हमणां आवेछे मारे आंगणीये,...वी० ॥६॥ (35) श्री महावीर जिन स्तवन हरलीया हरलीया हरलीयारे मेरा मनडां, हां हारे मेरा दिलडा, हां हारे मेरा चित्तडा, महावीरजिने हरलीयारे, ले लीया ले लीया ले लीयारे मेरा मनडां, महावीर जिने ले लिया रे (१) वीचरंता वीर जिनेश्वर आव्या, पावापुरी पावन कीयारे, सुरवर समवसरण करे रचना, करी भक्ति मन हरलीयारे, (२) सिंहासनमें प्रभुजी बिराजे, देशना अमृत वरसीया रे,.... सोल पहोर प्रभु देशना दीधी, अवसरे अणसण करलीयारे, में० (३) सर्व समाधि क्षण क्षण पामी, मन वच काया वश कीया रे... शिववधु वरीया भवोदधी तरीया, पारंगता ये पदलीया रे में० (४) मोक्ष कल्याणक महोत्सव जाणी, इन्द्रादिक सब मील गयारे, बडा ठाठसे ओच्छव करके, गाम पावापुरी कह दीयारे में० (५) तीरथ भेटी भवदुःख मेटी, आतम आनंद ले लीयारे ओगणीश पांसठ मागसुदी को, पंचमी दीने पावन थयारे, वीर विजय कहे वीर जिणंदना, दर्शन विना हम हरगयारे, (६) (36) श्री महावीर जिन स्तवन हे त्रिशलाना जाया, हुं मांगु तारी माया, घेरी वळ्या छे मुजने मारा, पापोना पडछाया, हे त्रिशला० (१) बाकुळाना भोजन लईने, चंदनबाळाने तारी, चंडकौशिकना झेर उतारी, एने पण लीधो उगारी, रोहिणीया जेवा चोर लूंटारा, तुज पंथे पलटाया, हे त्रिशला० (२) जुदा थईने पुत्री जमाई,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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