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________________ 405 (30) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : चांदिकी दिवार न...) हुँ साचो शिष्य तुमारो प्रभुजी, पट्टो लखी द्यो मारो (२) लावू लेखन लावू शाही, ला, कागळ सारो रे, मुक्तिपूरी, राज लखावू, मुजरो मानो मारो हु० (१) सगा संबंधी सर्व तजीने, आपनी सेवा कीधी, मात्र एटली आशा पूरी, जींदगी सोंपी दीधी,....हुं० (२) अनार्यआद्रकने पापी, अर्जुनमाळी उदाईराजा, शुं कर्यु बाळक अइमुत्ते, आप्युं शिवराज्य,....हुं० (३) चंद्रादि आदिनृप पुत्रो थया, सातसो सिद्ध किया, तो शुं हुं पण मुक्ति न मांगुं, में शी भूल ज कीधी....हुं० (४) गोशाळे लेश्याने मूकी, आपने पीडा दीधी, बीजोरा पाक वहोरावे रेवती, तेने जिनपदवी दीधी....हुं० (५) चंदनबाळा बाकुळा आपी, धरे मुक्तिनुं राज्य, श्रेणिक आदि त्रेविश शिवपद, चौदशे नारी समाज....हुं० (६) अष्टापद पर्वत जइ आव्या, पंदरसो अवधुत, तेने पण तमे मुक्तिमां स्थाप्या, प्रभु न्याय अद्भत....हं० (७) गौतम गणधर महामुनिवर, मोक्षवान लयलीन, शांति पामे विरवचनथी, दर्शन पाठ आ दीन...हुं० (८) (31) श्री महावीर जिन स्तवन (राग - सावन का महिना) जोयां प्रभुजी तमने, भटकीने में तो आज, सेवकने बोलावीने आपो शिवपुर राज, दिनदुःखीयाने तुं तो, बेली छे दिनदयाळ, मारा हैये तुं तो वसीयो जगनो तारणहार, (१) भटकी-भटकी आव्यो छु द्वारे, शरण हवे छे प्रभु एक, तारुं मारे, रखडतो रझळतो दुःख पाम्यो अपार, आव्यो ज्यारे तारा शरणे सुख पाम्यो हुं लगार (२) मोह-मायानुं तोफान आव्युं, भान भुलीने में तो सर्व गुमाव्युं, आपो आपोने मने शिक्पुर राज, लेवा आव्यो आजे प्रभु तारे दरबारमा (३) भूलो कीधी में भवोभव भारी, थाय छे दुःख मने अपरंपारी, तारो तारोने मने तारणहार, भक्ति करशुं आजे अमे तारी वारंवार (४) नित-नित नवला प्रभु गुण गावं, भावधरीने हैये भावना भावं, लावो सेवकने हवे भवने किनारे, तारा विना नथी कोई शरणुं मारे, (५) धन्य घडी छे धन्य दिवस छे, प्रभु मुख जोवानी तक मळी छे, चरण कमळनी सेवा मागु हुं करजोडी भवोभव होजो ज्ञानविमलने सेवा तुमारी, (६)
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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