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________________ 396 जाणवी, एक को खट मास; पणदिन उणो रे खट एक धारिये बारे एकेके मास०....वळी०.॥४।। बहोतेर पासखमण जग दीपता, छ दोय मासी वखाण; त्रण अढी मासी रे ए दोय दोय करी, दो दोढ मासी रे जाण०....वळी०.॥५॥ भद्र महाभद्र सर्वतोभद्र ए, दो चउ दश दिन होय; एहमां पारणुं प्रभुए नवि कर्यु, एम सोले दिन जोय०....वळी०. ॥६॥ त्रण उपवास रे पडिमा बारमी, कीधी बार ज़ वार; दोसो बेलारे उपर जाणिये, ओगणत्रीस उदार०....वळी०. १७॥ नित्य नित्य भोजन वीरजी ए नवि कर्यु, नवि को चोथ आहार; थोडा तपमां रे बेलो जाणिये, तप सघळो चोविहार०....वळी०. ॥८॥ देव मनुष्य तिर्यंचे जे कर्यां, परीसह सहयां अपार; बे घडी उपर नींद नवि करी, साडा बार वरस मोझार०....वळी०. ॥६॥ त्रणसो पारण दिवस वखाणिये, उपर ओगणपचास; अनुक्रमे स्वामी रे केवल पामिया, थाप्युं तीरथ सार०....वळी०. ॥१०॥ (15) श्री महावीर जिन स्तवन सुत सिद्धारथ सुत कंदोरे, वीर जिणंदा, भवि चातक चित्तहर चंदारे, त्रिशलाना नंदा प्रभुजी मारा, दशमा देवलोकथी चवीया, क्षत्रीय कुल अवतरीयां रे वीर० ॥१॥ मोहनजी मारा, मातानी भक्तिमां रातां, नंदिवर्धन छे भ्राता रे त्रि० ॥ वीरजिणंदा ॥२॥ बालुडा प्रभुजी, बालपणे बलवंता, जगजीवनजी जयवंतारे । वीर० ॥३॥ प्रीतम प्रभुजी प्यारा, परण्यां यशोदानारी, ते पुण्य पतिव्रतधारी रे । वीर० ।।४।। वैरागी वहाला, त्रीश वरसे थया त्यागी, पण शिवरमणीना रागीरे, ।। वीर० ॥५॥ त्रिभुवन तारक, तप तपीया बहु भारी, पण तुं ही रत्न कुख धारी रे, वीर० ॥६॥ शरणे हुं आव्यो, सहाय लेवाने तुमारी, स्वीकारो अरजी अमारी रे, ।। वीर० ||७|| लटकाला लटके, चंदनबालाने तारी, तारा मुखडा उपर जाऊ वारीरे, ॥ वीर० ।।८।। केवल गुणवंता केवलज्ञानने पामी, थयां शिवरमणीना स्वामीरे, ।। वीर० ||६|| महावीर प्रभु प्यारा, ह्रदय कमलमांही रहेजो, शुभवीरने अमरपद देजो रे, । वीर० ॥१०॥ (16) श्री महावीर जिन स्तवन वीर तमारी मूर्ति मंगलकारी, मंगलकारीने आनंदकारी, हेमवर्ण तनुं
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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