SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 393 केम पामुं स्वरुप रमण- सुख जो. करुणा० ॥४॥ सिद्धारथ कुल चरम श्री महावीरजी, त्रिशला नंदन त्रिजग वंदन नाथजो; मन मंदिरमां आवो प्यारा वीरजी, आप विना सुनाछे आ दरबार जो, करुणा० ॥५॥ अनेक जीवने तार्या तुमे करुणा निधि, तो शुं मुजने भूली जशो भगवंत जो, मन मोहन मुद्रा जोवा तलशे ताहरी, उदय रल कहे दियो दरिशण प्रभु आजजो, करुणा० ॥६॥ (10) श्री महावीर जिन स्तवन आव आव रे मारा मनडामां हे तुं छे प्यारो रे....हां तुं छे प्यारो रे, हरिहरादिक देव तुंही, तुं छे न्यारो रे....आव० ॥१॥ अहो महावीर गंभीर तुं तो नाथ माहरो रे. हुं नमुं तने गमे मने साथ ताहरो रे....आव आव रे० ॥२॥ ग्राही सही रे मीठडा हाथ माहरा वैरी वारो रे, द्यो द्यो रे दर्शन देव मने धोने लारो रे....आव आव रे० ॥३॥ तुं ही विना त्रिलोकमें केहनो नथी चारो रे, संसार पारा वारनो स्वामी आपनो आरो रे....आव आव रे० ॥४॥ उदयरल प्रभु जगमें जोतां तुं छे तारो रे, तार तारने मुने तार तुं संसार खारो रे....आव आव रे० ॥५॥ (11) श्री महावीर जिन स्तवन नव कनक कमल पगला धरतां, वळी चोत्रीस अतिशय अनुसरता, सवि जीव उपर करुणा करता, सखी वीरजिणंद महावीर जिणंद, सखीवीर जिणंद पावापुरी, उद्यानमां आवी समोसर्या,....सखी. वी० ॥१॥ मणी रजत कनक वडे भारी, करी समवसरण शोभा सारी, मव्यां सुरनर पति सेवा कारी,....सखी. वी० ॥२॥ देव वाजींत्र गगने गाजे छे, सुणी कुमति कदागह लाजे छे. प्रभुजीनी ठकुराई छाजे छे,....सखी वीर० ॥३॥ इन्द्रादिक पमुहा आवे छे. सर्वज्ञर्नु बिरुद धरावे छे, जिन वीरना नाद मचावे छे....सखी....वीर० ॥४॥ सुणी वेद अर्थ मद गळीया छे, जीवादिक संसय टळीया छे, जिन चरणे मनडां मळीया छे....सखी....वीर० ॥५॥ दीक्षा प्रभु हाथे लीधी छे, त्रिपदी जिनराजे दीधी छे, अंग बारनी रचना कीधी छे....सखी वीर० ॥६॥ करी चूरणावास भरी रंगे, भरी थाळ रह्यो जिनने
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy