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________________ 388 पास टरा, जब राग कटे ओर द्वेष मिटे, तुं ओर नहीं में ओर नही० ।३ । तुं हे अचलवरा में हुं चलनचरा, मुझे क्युं न बनावो आप सरा, जब होश झरे और संग टरे, तुं ओर० ।४। तुं हे भूपवरा, शंखेश खरा, मेंतो आतम राम आनंद भरा, तुम दरस करी सब भ्रान्ति हरी, तुं ओर० ।५। (56) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : विनती अवधारेरे;) वामा राणी जाया रे, सुर नर-मुनि भाया रे मुज मन आया हुआं, शुभ-वधामणा रे ।१। आरति सवि भांगी रे, तुमच्यु लय लागी रे, रूचि जागि धन पूरां आव्यां आपणा रे ।२। तुज संगे शोभागी रे, बहु शर्म विभागी रे, पशु भोग थयो धरणो धरो रे, ।३। आशातना कारी रे, दोषी महाभारी रे, द्वेष धारी असुर कमठ तर्यो रे ।४। श्री पार्थ जिणंदा रे, मुख पुनिम चंदा रे, परमानंदकारी ए प्रभु जाणीए रे ।५। तुज नाम संभारी रे, निज गुण विचारी रे, किर्ती ताहरी जग वखाणीए रे ।६। इम कहे लक्ष्मी वाचक प्रमाणीये रे ।७। (57) पार्श्वनाथ जिन स्तवन नवखंडा हो पास, मनडु लोभावी बेठा आप उदास, तारे तो अनेक छे ने, मारे तो तुं एक; कामी क्रोधी देव जोई। काठी नांखी टेक..... नव० १ कोई देवी देवताना, झाली उभा हाथ, मोढे मांडी मोरली ने, नाचे राधा नाच ..... नव० २ जटा जुट शिर धारे, वळी चोळे राख, गमे तो गिरजाने राखे, जोगीपणुं खाख ..... नव० ३ पीर ने फकीर जोया, निरगुणी देव, काच तृण मणी गणी, आ तो खोटी टेव ..... नव० ४ देव देखी जुठडाने, आव्यो छु हजुर, गुण आपो आपना तो, कांति भरपूर ..... नव० ५ (1) श्री महावीर जिन स्तवन वीरजिनेश्वर साहिब मेरा, पार न लहुँ तेरा, महेर करी टालो महाराजजी; जन्म मरणना फेरा हो जिनजी, अब हुं शरणे आव्यो, ॥१।। गर्भावास तणां दुःख महोटां उंधे मस्तके रहियो; मल मूत्र मांहे लपटाणो, एहवां दुःख में सहियां०....हो जिनजी० ॥२॥ नरक निगोदमां उपन्यो में चवीयो, सूक्ष्म बादर थईयों; वींधांणो सुइने अग्र भागे, मान तिहां किहां रहियो०....हो
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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