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________________ 376 (38) पार्श्वनाथ जिन स्तवन चित्त समरी शारदा मायरे, वली प्रणमी निजगुरु पायरे, गाउ त्रेवीशमोजिनराय, व्हालाजी, जन्म कल्याणक गाउंरे, सोना रुपाने फुलडे वधाएं ।। व्हाला० ॥१॥ काशी देश वाणारसी राजेरे, अश्वसेन छत्रपति छाजेरे, राणी वामा गृहिणी सुराजे ॥ व्हाला० ॥२।। चैत्रवदि चोथे ते चवीयारे, माता वामा कुखे अवतरीयारे, अजुवाल्यां छे एहना परिया ॥ व्हाला० ॥३॥ पोषवदि दशमी जगभाणरे, होवे प्रभु, जन्म कल्याणरे, वीशस्थानक सुकृत कमाण ॥ व्हाला० ॥४॥ नारकी नरक सुख पावेरे, अंतमुहूर्तदुःख जावेरे, एतोजन्म कल्याणक कहावे।। व्हाला० ॥५॥ प्रभु त्रण भुवन शिरताजरे, तुम तारण तरण जहाजरे, कहे दीपविजय कविराय ॥ व्हाला० ॥६॥ (39) श्री मक्षीजी पार्श्वनाथ भगवान का स्तवन वामा नंदन चालो भवियण भावशुं रे, तमे चालो चालो मक्षी पारसनाथ, एहनी यात्रा करतां, संकट सघला जाय छे, रे एतो साचो साचो शिवनगरीनो साथ, वामानंदन वंदन चालो भवियण भावशं रे ॥१॥ जिनजी दिक्षा लइने वडतल काउस्सगमें रह्यां रे, आव्यो कमठां सुर लेई मोटी मेघनी माल, गाज्यो गगने सघने गड गड करतो घुमतो रे, दामिनी बीजली चमके, जब जब करती जाल, ॥ वामा० ॥२॥ वरसवा लाग्यो वरसवां मुंशल जेवी धारशुं रे, क्षणमें जल थल ते तिहां भू पर एकज थाय, प्रभुनी नासिका पासे जलनो छोलो आवीयो रे, अवधिये जोई अहिपति आव्यो पाय ॥ वामा० ॥३॥ प्रभुने वंदि खंधे लेइने उपाडिया रे, शिर पर सहस्त्र फणोकरी रोकी जलनी छांट, जयजय शब्द करीने अद्भूत नाटक मांडियो रे, -थावा लाग्यां मंगल रव रव ना ते ठाठ, ॥ वामा० ॥४॥ इंद्राणीयो मली ठम ठम ठम ठम करती नाचती रे, धींतांक धींतांक धींतांक मृदंगना भौंकार ॥ वीणा वाजे रणजण रणजण रणजण वांदशुं रे, पुनीताल कंसारने, भुंगलना भौंकार ॥ वामा० ॥५॥ रुमझुम रुमझुम रुमझुम ठमको देइने नाचती रे, छूमछुम छुमछुम छुम छूम घुघरीनो घमकार, वांदणा लेती गावती अश्वसेनना पुत्रने रे, माती तानी मुखथी करती सौ सौंकार । वामा० ॥६॥
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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