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________________ 356 (ढा. २०) समवसर्या जिनराय, श्री गिरनारे रे; तव वंदे हरि प्रभु पाय, दुःखडां हारे रे...।।१।। सांभळी देशना सार, केई प्रतिबूझीया रे; लहीले संसार असार, कर्म शुं झुझिया रे०...॥२॥ राजसुता बहु साथ, संजम लीधु रे; कांई राजुल नेमी हाथ, बोल्युं कीधुं रे०...॥३॥ रहनेमि पण त्याहिं, चारित्र लीधुं रे; पण अक दीन कंदरमाही, चलचित्त की, रे०...।।४।। राजीमती परताप, धीरज धारी रे, प्रभुपासे आलोई पाप, वरी शिवनारी रे०...॥५॥ घरमांहे सय चार, वरस रहाणी रे; वळी पांचसे राजुलनार, केवलनाणी रे०...॥६॥ संजम पाळी सार, शिवसुख धरती रे; कहे वीर धरी बहु प्यार, व्हेनने मळती रे०...॥७।। (ढा. २१) रसिया शिवनारीना सघला. प्रभुना परिकरा रे लोल, रसिया अकादश गुणवंत सुहंकर गणधरा रे लोल; रसिया सहस अढार अढार, शीलांग धणी मुनि रे लोल, रसिया आणाधार हजार, चालीश साहुणी रे लोल०...॥१॥ रसिया श्रावक ओगणोतेर, सहस लक्षाधिका रे लोल, रसिया त्रण लाख छत्रीश, हजार ते श्राविका रे लोल; रसिया त्रणसें वरस कुमारपणे, घरमा रह्यां रे लोल; रसिया चोपन वासर, छद्मस्थे अ रह्या रे लोल०...॥२।। रसिया देसुणा सातसें वरस, प्रभुजी केवली रे लोल, रसिया ओक हजार वरस ओ, सर्वाय मली रे लोल; रसिया सदि अषाडनी आठमे, रैवतगिरिवरे रे लोल, रसिया पांचसे छत्रीस मुनि, साथे अणसण करे रे लोल०...॥३॥ रसिया ओक मासी उपवासे, प्रभुजी शिव गया रे लोल, रसिया अविचल जोडी राजुलशुं, भेला थया रे लोल; रसिया जन्म जरा मरणादिक, भव भय निस्तर्या रे लोल०...॥४॥ रसिया पूर्णानंद विलासी, अरुपी पद वर्या रेलोल, रसिया अगुरुलघु अवगाह, अनंत गुणे भर्या रे लोल; रसिया ध्यान अगोचर गोचर, ज्ञानी गंभीरने रे लोल, रसिया महेर करीने शरणे, राखो वीरने रे लोल०..।।५।। (ढा. २२) मे इम नाथ निरंजन गाया लाल प्रभु गुण दिल धारी, मली जिम गोपिये हुल राया लाल प्रभु गुण दिलधारी, परण्या नहि पण प्रितडी पाळी, लाल प्रभु गुण दिल धारी, अंते वरिया शिव लटकाळी, लाल प्रभु गुण दिल धारी. १. तपगच्छ गयण दिणंद समानो लाल प्रभु गुण दिल
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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