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________________ 354 महाराज; देजे०...करुणायर मुज उपर नाथ दया करी, वीर कहे पाछा घेर आवो आज....हे.मा०...॥८॥ (ढा. १७) आवो हरिवंशी जदुराजा, राखो जदुकुलनी माझा; जादव लोक जूले झाजा, छोकरवादी करी ना जा...आवो०...॥१॥ हा! जादवकुल ठाकुरीया! हा? जगत-शरण! गुण भरीया; हा! करुणायर! सुण बलीया, मने मेली पाछा किम वळीया...आवो०...॥२॥ निस्नेही त्यजता भज्जा, निर्लज्ज नावी किम लज्जा; दैव! किहां ते ओ कीg, निष्ठुर! में तुज | लीधुं०...आवो०...॥३॥ दैव पति अवलो किधो, जीवीत शुं मुजने दीधो; रुप समर बाणे छेडु, प्रेम रसे हैडुं भेद्यु...आवो०...॥४॥ शान ने शुद्ध गई वहेली, घरन गमे हुं थई घेली; मंदिरयुं खावा धाशे, वासरवरस समो जाशे०...आवो०...॥५॥ मुज कंसार नवि चाख्यो, शो अवडो अंतर राख्यो; जी- अंतर हतो पहेलो तो शुं? विवाह कर्यो वहेलो०...आवो०...॥६॥ काढो धेलाई अणेवेशे, मने साहेलीओ महेणां देशे; नणदीरा वीरा! सांभलजो, के शामलिया, पाछा वळजो...आवो०...||७|| (ढा. १८) तुम नारी तणुं दुःख देखी हो के, पाछा वलजो शामलीया; नवि जाशो अम उवेखी हो के, पाछा वलजो शामलिया, मेहेली जाशो आ वेशे हो के, पा०...मुने लोक ते चुंटी लेशे होके०...पा०...॥१॥ तुम हांसी ने हुं रोसी हो के, पा० अहवो कुण मलीयो जोशी होके;...पा०...शुं हरणां वचने लागा हो के, पा० जूं करडये कुण होय नागा होके०...पा०...॥२॥ ओणे चंद्र कलंकी कीधो हो के, पा० सीताने विजोग ते दीधो हो के पा० माहरो को रंगमां भंग हो के, पा० साचुं छे नाम कुरंग होके०... पा०...॥३॥ सघला सिद्धनी भुगतारी होके०...पा० मुगति गणिका धूतारी हो के, पा० धूतारीशु कुण महाले हो के, पा० वेश्याओ घर किम चाले होके०...पा०...॥४॥ कहे सखीयो बहेनी सुणीये होके०...पा०...किम निस्नेही वर थुणीये होके०...पा० प्रेम ते हैडुं ज्वाले होके०...पा०.... प्रेम ज्ञानना गुणने बाले होके०...पा०...॥५॥ वर छांडो जे वैरागी होके०...पा०...बीजो वर करशुं रागी होके०...पा०...राजीमती कानने ढांकी हो के, पा० दूर तजीये वात जे वांकी होके०...पा०...॥६॥ कहे राजुल
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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