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________________ 351 नींचुं जुवे मुख जाम रे. मुख हसतुं दीठं ताम रे...॥४।। मान्यो मान्यो विवाह नेमिनाथे रे; देई ताली कहे सहु साथे रे; अनिषेधे अनुमति न्याय रे; पाणीग्रहण ते अंगीकराय रे...॥५॥ करे उद्घोषणा सहु नारी रे, नजरे निरखे मोरारी रे; जई समुद्र विजयकुं वधाई रे, देतां हरि वीर सवाई रे...॥६।। (ढा. १२) आगल भोलीने पाछळ टोली तो, विचमां नगीना नेम चले; अलबेली साहेली रे, चाली पुरमां०..ओक कहे सुण भामिनी भोली तो, पाणिग्रहण मान्युं भले०..अ०..चा०..।।१॥ एक कहे महिमा मुज करो तो, माहरु वचन अणे मानीयुं; अ०....कोई कहे मान्युं अहनी मेले तो, नहि चाले ओम जाणीयुं०...अ०...चा०..॥२॥ केई कहे माहरा लोचन लटके तो, केई वचन मुज वांकडे; अ०...चा०..केई कहे मान्यु इणे त्यार तो, आव्या घj जब सांकडे. अ०...चा०..॥३॥ भामिनी भाखे धरी उजमाल तो, परणवा नारी भणी; अ०...चा०..॥४॥ केई कहे खोटी अह वात तो, राखी माजा आपणी; अ०...चा०..॥५॥ उग्रसेन तणे घरे श्री कृष्ण तो, पहोत्या मन हरखे करी तास सुता मांगी गुणवंततो, रुप हरत सुर सुंदरी अ०...चा०..॥६॥ पंचबाण तणी राजधानी तो, नामे सती राजीमती; अ०...चा०..कोष्टुकिने पूछे वर लग्न तो, समुद्रविजय ने श्रीपती, अ०... चा०..॥७॥ श्रावण मासनी उज्वल छठे तो, ली, लगन उलट घणे; अ०...चा०..वीर विवेकी चढे वरघोडे तो, चालो सखीयो जोवा भणे. अ०...चा०..॥८॥ (ढा. १३) हवे विवाह सामग्री मेली रे, देती तिहां वडीयो वडेरी रे; वळी धवल मंगलशं राती रे, शामलियाना गुण गाती रे...शामलियाना... ॥१॥ पीठी चोले सुगंध धरीने रे, विधिपूर्वक स्नान करीने रे; हेम मुद्राओ दश अंगुलीयो रे, बाजुबंध गले सांकलीयो रे...शामलियाना...॥२॥ काने कुंडल केडे कंदोरो रे, कटिबंध कसबनी कोरो रे; ओम शोभित झाकझमाल रे, धर्यो खूपतिलक शिर भाले रे...शामलियाना...॥३॥ करमा धरी श्रीफल पान रे, रथ बेठां पतंग समान रे; वळी बळद जोतरीया बाला रे, गले सोवन घुघर माला रे...शामलियाना...॥४॥ हय गय चलतां बहु तत्र रे, प्रभु शोभित चामर छत्र रे; जादव नारी बहु साथे रे, लामण दीवो माताजीने हाथे रे...शामलियाना...।।५।। जादव कुल कोडि ते झाझा रे, ओक ओक नी
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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