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________________ 346 (32) श्री नेमनाथ जिननो मांडवो (मारा शामळा छो नाथ) आव्या उग्रसेन दरबार, नेम परणवा राजुलनार, नवभवनी नारीने बुजववा ॥१॥ जान तोरण पासे आवे, सखीयो मंगल गीतो गावे, सजी सोळ शणगार, राजुल उभा गोख मोजार, पति शामळीया नेमने निहाळवा ॥२॥ सुणी नेमनुं हैयु दुभाय छे रथडो पाछो चाळीने जाय छे, देवा मांडयु वरसीदान, त्यां तो रुवे राजुलनार पतिः ॥३॥ पति विरह सुणी धरणी ढळे, राजुल कोटी कोटी विलाप करे, मुजने छोडी न जाओ नाथ, हुं तो आवु तमारी साथ पति० ॥४॥ सहसावनमां जइ संयम लीये, राजुल पण संसार तजे, बुजवी नेहे राजुल नी जोडी शोभे छे, बन्ने मुक्तिनी मोज माणे छे, पहेला तारी राजुल नार, पछी पहेरे मुक्तिमाळ पति० ॥६।। गुरु उदय रन वीनवे छे, भवोभवनां दर्शन इच्छे छे, जेम तारी राजुलनार, तेम तारी ल्यो आ बाळ, पति शामळीया नेमने निहाळवा ।।७।। (33) नेमनाथनी जान जानमां हाथी घोडा ने गाडी, नेमजी बेठा जान सजावी, आइ आइ आइ जान, जोवा चालो भाइ, जान आवी तोरण, आवा ज सुणी, पशु कहे प्राण हमारा जाए भाइ, आइ आइ आइ दया, नेमकुमार को भाइ,...२.... जीव सहुने वहालो, दया वसावी, तोरणथी रथडो लीधो पाछो वाळी; वाळी वाळी वाळी मन पाछो वाळी भाइ....३.....राजुल रही झुरी, नयने वहे पाणी, नेम विना बीज, नाम नहि भाइ; चाली चाली चाली राजुल, पियु पंथे चाली, नव नव भवनी, प्रीत संभारी, मुक्ति महेलने, रह्या शोभाइ, वंदे वंदे वंदे दर्शक, प्रेमे प्रभुने वंदे....५.....जानमां हाथी घोडाने गाडी.... (34) श्री नेमिनाथ भगवाननो विवाहलो (ढा. १) सरस्वती चरण सरोज रमी रे, श्री शंखेश्वर पाय नमी रे; नेमी विवाह ते रंगे गाशें, जिम नमिनाथे पूरव प्रकाश्युं, ॥१॥ नेम नगिना आवो घडी रे, मित्र कहे अम पाय पडी रे; रमतां आयुधशालाओ आव्या, चक्र गदा लेई शंख वजाव्या. नेम० ॥२॥ शब्द सुणी चिंता अधिकेरी, कुण उपनो मुज उपर वेरी; दैत्यारी ततखिण तिहां जाय, तव दीठो मीठो लघु
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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