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________________ 341 (25) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : तेरी प्यारी प्यारी सुरत) सांभळ रे शामळीया स्वामी, साच कहुं शिरनामी, वात न पूछे तुं अवसर पामी, तो शानो तुं अंतरजामी.... कहु० (१) आगळ ऊभा सेवा कीजे, पण तुं किमही न रीझे रे, निशदिन तुज गुणो गाईए, पण तिल मात्र न भीजे.... सां० (२) जो मुजने भवसायर तारो, तो शुं जाये तुमारो रे, जो पोतानो बिरुद संभाळो, तो कांई न विचारो रे.... सां० (३) हुं शुं तारो तारक शानो, इमछूटी पडी न शकशो रे, जो मुजने सेवक त्रेवडशो तो वातोडीया माहे पडशो.... सां० (४) ओछी अधिक वात बनाइ, कहेतां खोट न कांई रे, भक्त वत्सल्य जिनराज सदाइ, विर विजय वरदाई रे.... सां० (५) (26) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग-तोरा मन दर्पण) में आजे दरिसण पाया, श्री नेमीनाथ जिनराया, प्रभु शिवादेवीना - जाया, प्रभु समुद्र विजय कुळ आया, कर्मो के फंद छोडाया, ब्रह्मचारी नाम धराया, जेणे तोडी जगतनी माया, श्री नेमीनाथ जिनराया० (१) रैवतगिरि मंडण राया, कल्याणक तीन सोहाया, दीक्षा केवल शिवराया, जगतारक बिरुद धराया, तुम बेठे ध्यान लगाया, में आजे दरिशन पाया० (२) अब सुनो त्रिभुवन राया, में कर्मो के वस आया, हुं चतुर्गति भटकाया एम दुःख अनंता पाया, ते गिनती नहि गिणाया, में आजे दरिशन पाया० (३) में गर्भावास में आया, उंधे मस्तक लटकाया, आहार सरस विरस भुक्ताया, एम अशुभ कर्मफल पाया, इण दुःख से नहीं मुकाया, में आजे दरिशन पाया० (४) नरभव चिंतामणी पाया, तब चार चोरमिल आया, मुज चौटेमें लूंट खाया, अब सार करो जिनराया, किस कारण देर लगाया, में आजे दरिशन पाया० (५) जिणे अंतर गत में लाया, मे नेमि निरंजन ध्याया, दुःख संकट विघ्न हठाया, ते परमानंद पाया, फिर संसारे नहि आया, में आजे दरिशन पाया० (६) में दूर देश से आया, प्रभु चरणे शिश नमाया, में अरज करी सुखदाया, तुमे अवधारो महाराया, एम 'विर विजय' गुण गाया, में आजे दरिशन पाया० (७)
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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