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________________ 327 भ० चेतन समता संग रंगमें उमयां रे, रं०॥३॥ सम्यग्दृष्टि मोर तिहां हरखे घणुं रे, ति० देखी अद्भूत रुप परम जिनवर तणुं रे, प० प्रभु गुणनो उपदेश ते जलधारा वहीरे, ज० धर्म रुचि चित्त भूमिमांहि निश्चय रही रे, मां०॥४॥ चातक श्रमण समूह करे तब पारणो रे, क० अनुभव रस आस्वाद सकळ दुःख वारणो रे; स० अशुभाचार निवारण तृण अंकूरतारे, तृ० विरति तणो परिणाम ते बीजनी पूरतारे, बी०॥५॥ पंच महाव्रत धान्य तणा करसण वध्यारे, त० साध्य भाव निज थापी साधनताए सध्या रे; सा० क्षायिक दर्शन ज्ञान चरण गुण ऊपना रे; च० आदिक बहु गुण सस्य आतम घर नीपना रे, आ०॥६॥ प्रभु दरशण महा मेह तणे प्रवेशमें रे, त० परमानंद सुभिक्ष थयो मुज देशमें रे, थ० देवचंद्र जिनचंद्र तणो अनुभव करोरे, त० सादि अनंतो काळ आतम सुख अनुसरोरे, आ०॥७॥ (7) श्री नमिनाथ जिन स्तवन वप्रानंदन वधारजो रे, निज सेवकनी लाजरे। जिनेसर० सौम्य नजरे सामुं जुओ हो लाल । एकांगी करी ओळगे रे, ते किम आवे वाजरे । जिनेसर० १ रागीद्वेषी देवता रे, दीठां नावे दाय रे। जिनेसर० मुख मीठा मीठा हिये हो लाल । लट पट करी लख लोकने रे, ललचावे धरी माया रे । जिनेसर० २ मन न रूचे तिहां माहरूं हो लाल आगम मांही सांभव्युं रे, पतित पावन तुम नाम रे। जिनेसर० करुणावंत शिरोमणी हो लाल। तो मुजने एक तारतां रे। शुं लागे छे दाम रे। जिनेसर० ३ जग जश विस्तरशे घणो हो लाल । तुम दरिशने तन उल्लसेरे, जलधर जेम कदंब रे। जिनेसर० कोकिल अंब अलि मालति हो लाल । मोडो वहेलो मनावशो रे, तो एवडो शो विलंब रे। जिनेसर ४ खोट खजाने को नहि होलाल । आखर आशा पूरशो रे, मुजने सबळ विश्वासरे। जिनेसर० एवडी गाढिम कां करो हो लाल । क्षमाविजय कवि शिष्यनी रे, सांभळी ए अरदास रे । जिनेसर० ५ परमानंद पद दीजीये हो लाल । (1) श्री नेमनाथ जिन स्तवन नेमजी चालो तो तमने आंखडीजी, राजा श्री समुद्रविजयनी आणजो,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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