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________________ 325 कोई जिनपूजा नवि कीजे, तेहगें नाम नहि लीजे रे.....श्री० (३) वप्राराणीनो सुत पूजो, जेम संसारने धूजो रे, भवजल तारक कष्ट निवारक, नहि कोई एहवो दुजो रे.....श्री० (४) श्री कीर्तिविजय उवज्झायनो सेवक, विनय कहे प्रभु सेवो, त्रण तत्त्व मनमांही अवधारी, वंदो अरिहंत देवो रे.....श्री० (५) (3) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : मणियारो ते) श्री नमिजिन तुज शुं सहिरे मे, करी अविहड प्रीत रे, तुं निसनेही थई रह्यो प्रभु ए नहि उत्तम रीत रे, सलूणा मन खोली सामु जुओ मारा वाहला मनखोली...(१) एटला दिन में त्रेवडी रे, राखी ताहरी लाज, रे आजथी झघडो मांडशुं रे, जो नहि सारे मुज काज रे... सलूणा० (२) आगळथी मन माहरूं रे, ते कीधुं निज हाथ रे, हवे अळगा थईने रह्या ते दावो छे तुम साथ रे...सलूणा० (३) कठिन ह्रदय सही ताहरुं रे, वज्र थकी पण बेस रे, निर्गुण गुण राचे नहि रे, तिल मात्र नहि तुज हेज रे... सलूणा० (४) मे एक तारी आदरी रे, न आवे तुज मन नेह रे, छोटतां किम छूटशो रे आवी पालव वळग्या जेह रे... सलूणा० (५) सो वाते एक वातडी रे, ऊंडु आलोची जोय, आपणने जे आदर्या, इम जाणे जगसहु कोय रे...सलूणा० (६) जो राखे सही, दीजे मनवंछित दान रे... सलूणा० (७) । (4) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : जरा सामने तो आवो) षट दरिसण जिन अंग भणीजे, न्याय षडंग जो साधे रे; नमि जिनवरना चरण उपासक, षट् दरसण आराधे रे ।१०। १ जिन सुरपादप पाय वखाणुं, सांख्य योग दोय भेदे रे; आतमसत्ता विवरण करता, लहो दुग अंग अखेदे रे |ष०। २ भेद अभेद सुगत मीमांसक जिनवर दोय कर भारी रे; लोकालोक अवलंबन भजीये, गुरुगमथी अवधारी रे । ष०। ३ लोकायतिक कूख जिनवरनी, अंश विचार जो कीजे रे; तत्त्वविचार सुधारस धारा, गुरुगम विण किम पीजे रेष+ ४ जैन जिनेश्वर वर उत्तम अंग, अंतरंग बहिरंगे रे; अक्षर न्यास धरा आराधक, आराधे धरी संगे रे, राष० । ५ जिनवरमां सघला दरिशन छे, दर्शने, जिनवर भजनारे; सागरमां सघली
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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