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________________ 323 (8) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन मुनिसुव्रत हो प्रभु मुनिसुव्रत महाराज। सुणजो हो प्रभु सुणजो सेवकनी कथाजी। भवमां हो प्रभु भवमां भमीयो हुँ जेह, तुमने हो प्रभु तुमने ते कहुं छु कथाजी। १। नरके हो प्रभु नरके नोधारो दीन । वसीयो हो प्रभु वसीयो तुम आणा विनाजी। दीठां हो प्रभु दीठां दुःख अनंत, वेठी हो प्रभु वेठी नानाविध वेदनाजी । २। तिम वली हो प्रभु तिम वली तिर्यंच मांही। जालीम हो प्रभु जालीम पीडा जे सहीजी। तुं हीज हो प्रभु तुंहीज जाणे तेह, कहेतां हो प्रभु कहेतां पार पामुं नहिजी ३। नरनी हो प्रभु नरनी जातिमां जेह। आपदा हो प्रभु आपदा केम जाये कथीजी। तुज विण हो प्रभु तुज विण जाणणहार, तेहनो हो प्रभु तेहनो त्रिभुवनको नथीजी । ४ । देवनी हो प्रभु देवनी गति दुःख दीठ। ते पण हो प्रभु ते पण सम्यक् तुं लहेजी। हो जो हो प्रभु हो जो तुमशुं नेह। भवोभव हो प्रभु भवोभव उदय रतन कहेजी।५। (9) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (तेरे द्वार खडा भगवान) श्री जिनना गुण गाउं रे, प्रभुजी जयकारी। चरण कमलने पाउं रे, जाउं बलिहारी। श्री मुनिसुव्रत जिनवर सुखकर, जगबंधव जगवाहला । सुकृतलता नवपल्लव करवा, तुज आणा घनमाला रे। प्र० १ उपकारी शिर शेष छे तुंहि, गुणनो पार न लहीए। लोकोत्तर गुण लौकिक नरथी, कुण अतिशयथी कहीए रे। प्र० २ समकित सुखडली लघु शिशुने। आपीने प्रीति करावी। केवल रयण दीया विण साहिब, किम सरशे कहो समजावी रे। प्र० ३ कच्छप लंछन वाने अंजनपणे, पाप पंक सवि टाळे । अचरिज एह अद्भूत जगमांहि, धवल ध्यान अजुआळे रे। प्र० ४ वीतरागपणे लोक तणां मन, रंजे ए अधिकाइ। सुमित्र जात ते जुगतुं सहुशुं, राखे जे मित्राई रे। प्र० ५ पद्मानंदनना पद वंदन, करतां सुर नर कोडी। जगत गुरू जिनजीना सरीखी, त्रिभुवनमां नहि जोडी रे। प्र० ६ ज्ञानविमल गुणनी प्रभुताइ, अधिक उदय दिलधारो। दरिशनथी दर्शन करी निर्मल, सफल करो जनमारो रे। प्र० ७
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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