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________________ 318 सवि भवि चित्त अपरिग्रही त्रिगडे वसोजी, भोगवो सूरना वित्त । गुणवंता । २। कुंभ करे पद सेवनाजी, लंछन मिसि प्रभु पाय । तें तारक गुण आपीयोजी, घटमां तुम पसाय । गुणवंता।३। कुंभ थकी जे उपनोजी, मनिपति मही मांह। राणी प्रभावती नंदनोजी, महिमावंत अथाह । गुणवंता । ४। लीला लच्छी दीये घणीजी, नीला वान अदीन । न्यायसागर प्रभु पद कजेजी, मन मधुकर लयलीन। गुणवता ।५। (11) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (सिद्धारथना रे नंदन विनवू) सेवो मल्लि जिनेसर मनधरी, आणी उलट अंग। नित नित नेह नवल प्रभुशुं करो। जेहवो चोलनो रंग। से० १ जिणे पामी वली नरभव दोहिलो, नवि सेव्या जगदीश। ते तो दीन दुःखी घर घर तणां, काम करे निशदीश । से० २ प्रभु सेव्ये सुर सानिध्य इहां करे, परभव अमरनी रिद्ध | उत्तम कुल आरज क्षेत्र लही, पामीये अविचल सिद्ध। से० ३ प्रभु दरिशन देखी नवि उल्लसे, रोमांचित जस देह। भवसायर भमवानुं जाणीये, प्राये कारण तेह । से० ४ जिनमुद्रा देखीने जेहने, उपजे अभिनवो हर्ष । भवदव ताप शमे सही तेहनो, जिम वूठे पुख्खर वर्ष। से० ५ तुम गुण गावारे जिव्हा उल्लसे, पुन्य पडुर होय जास। बीजा कलेश निंदा विकथा भर्या, करे परनी अरदास । से० ६ गिरूओ साहिब सहेजे गुण करे। आपे अविचल ठाम । श्री गुरू खिमाविजय पय सेवतां, सकल फले जस काम। से० ७ (12) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (जगपति नायक नेमि जिणंद) जगपति साहिब मल्लि जिणंद, महिमा महियल गुणनीलो। जगपति दिनकर ज्युं उद्योत, कारक वंशे कुलतिलो । १। जगपति प्रबल पुन्य पसाय, उद्योत नरके विस्तरे, जगपति अंतरमुहूर्त ताम, शातावेदनी अनुसरे । २ । जगपति शांत सुधारस वृष्टि, तुज मुखचंद थकी झरे | जगपति पडिबोहे भवि जीव, मिथ्या तिमिर दूरे करे । ३। जगपति भवसायरमां जहाज, उपगारी शिर सेहरो। जगपति तुम दरिशनथी आज, काज सर्यो हवे माहरो । ४ । जगपति दीठे मुखकज तुज, नाठा त्रण प्रभु माहरे। जगपति दारिद्रय पाप दुर्भाग्य, पुष्टालंबन ताहरे । ५। जगपति भव भव संचित जेह,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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