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________________ .315 हर्षना फंदे फर्यो. मल्लि० (३) छल करीने घणुं दगाबाज, द्रव्य में संचिया; जुठु लवी मुख वाच, लोकोना मन हर्या मल्लि० (४) पतित पामर रंक जे जीव, तेने छेतर्या बहु; पापे करी भराय पिंड, कथा केटली कहुं. मल्लि० (५) प्रभु ताहरो धर्म लगार, में तो नवि जाणीयो; में तो उत्थापी तुम आण, पापे भर्यो प्राणीओ. मल्लि० (६) शुद्ध समकित ताहरूं जेह, ते मनथी न भावियु; शंका कंखा वितिगिच्छा, मोही पाखंडे पडावीयुं. मल्लि० (७) तकशीरो घणी जगनाथ, तें मुखे नवि गणि शकुं; करो माफ गुना जगनाथ, कथा केटली बकुं मल्लि० (८) रीझ करीने घणी जगनाथ, भवपासने तोडीओ, शरणे राखीने महाराज, पछे केम छोडीये. मलल० (६) मलीया वाचक वीर सुजाण, विनयनी आवारमा, जेथी टळीया कर्मना फंद, प्रभुजी देदारमां. मल्लि० (१०) (5) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (घोर अंधारीरे) मिथिला नगरीरे, अवतरीयाने, कुंभ नरेश्वर नंद, लंछन सोहेरे, कलश तणुंने नीलवरण सुखकंद ॥१॥ मल्लि जिनेश्वर रे, मन वसीयाने ओगणीशमा अरिहंत, कपट धरमनारे, कारण थी प्रभु कुंवरी रुप धरंत ।।२।। सहस पंचावनरे, वर्ष सुणोने आयुतणो परिमाण, माता प्रभावतीरे, उदरे धरीया, पणवीश धनुष तनुमान ॥३॥ सहस पंचावनरे, साध्वीओने, मुनि चालीश हजार, समेत शिखरेरे, मुगते गयाने, त्रणभुवन आधार ॥४॥ अडभय टालीरे, आजथकी जिणे, बांधी अविहड प्रीत, राम विजयनारे, सेवकनी प्रभु, एह छे अविहड रीत।।५।। (6) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (सग : द्वारापुरीनो नेम राजीयो) प्रभु मल्लि जिणंद शांति आपजो, कापजो मारा भवो दधिना पापरे ।। दयालु देवा प्रभु०॥१॥ वीतराग देवने वंदु सदा, बालब्रह्मचारी जग विख्यात रे।। दयालु देवा०॥२।। अचल अकलने अमर तुं, कषायमोह नथी लवलेशरे । दयालु देवा०॥३॥ सर्प इंश्यो छे मने क्रोद्धनो, रगे रगे व्याप्यु तेनुं विषरे ।। दयालु देवा०॥४॥ मान पत्थर स्थंभ सारीखो, मने कीधो तेहने जडवानरे ।। दयालु देवा०॥५॥ माया डाकण वलगी मने, आप विना
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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