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________________ 311 कीजे कोड आक्षेप हो०...मुज०. ॥२॥ जे भजतां भाव धरे नहि, किम भजी ओ तेह उल्लास हो; न्याराशुं प्यार कीजे किश्यो, पण मेले नहि मन आश हो०...मुज०.॥३॥ जाण आगे जणावीओ, अम विनतडी वितराग हो; शुं घj आप वखाणीओ, ओक तुजशुं मुज मन राग हो०...मुज० ॥४।। ताहरी महेर नजर विना, मुज सेवा सफल न होय हो; जे सहेजे तमे साहमुं जुओ, तो मुजने गंजे न कोय हो. मुज०. ॥५॥ त्रिभुवनमां तुज विण सही, शिर केहने न नामुं स्वामी हो; ओलगडी श्री अरनाथनी, अवसरे आवशे काम हो०...मुज०. ॥६॥ जाणुं छु विसवाविश सही, मुज आशा फळशे नेट हो; नित्य चाहुं उदयरत्न वदे, तुज पयनी भवो भव भेट हो०...मुज०. ।।७।। (2) श्री अरनाथ जिन स्तवन सुण मेरी बेनी ओ जिन साचो, रत्नचिंतामणि जाचो रे, राय सुदर्शन कुल दीवो, श्रीदेवी सुत चिरंजीवो रे,..सुण० ॥१॥ ओ साहिब मोरा दिल माहे वसीयो, जिम कमले भमरो रसीयो रे, अही ज सयण सदा निरवहीये, जिम कुसुममां परिमल वहिये रे,..सुण० ॥२॥ ताहरी सूरतकी बलिहारी, देखत ही दिल प्यारी रे, पाप संताप कहत अवगाहयां आज सुधाकुंडमां नाहयो रे..सुण० ॥३॥ नाथ मेरे अरनाथ सोहावे. जश सेवे सुरनर नाथो रे. दान संवत्सरी बहु धन दीधा, सुरतरु समवड हाथो रे,..सुण० ॥४॥ त्यागी भोगीने, सौभागी, जोगीसर वैरागी रे, मेरुविजय गुरु चरण सेवा करे, विनित है तुम गुण रागी रे,..सुण० ॥५॥ (3) श्री अरनाथ जिन स्तवन (मेरा जीवन कोरा कागज) प्रणमो प्रेमे प्रह समेरे, जिनवर श्री अरनाथ ॥ आं जगमांही जोवतारे साचो शिवपुर साथ ॥ प्रणमो प्रेमे०।।१।। सुखदायक साहिब मल्योतो, फल्यो सुरतरुं बाल ।। देखी प्रभु देदारनेरे, पामी जे भवपार ।। प्रणमो प्रेमे०॥२॥ नामथी नवनिधि पामीयेरे, दरिशणे दुर पलाय॥ प्रहसमे प्रेमे प्रणमतारे, भवोभवना पातीक जाय॥ प्रणमो प्रेमे०॥३॥ सुरती ए जिनवर तणी रे, साची सुरतरु वेल ॥ निखतां नितुं नयणशुरे, उलटे आनंद रेल ।। प्रणमो प्रेमे०॥४॥ शांत सुधारस शुं भरीरे, ए मुरती मनोहार ।। प्रणमे जे
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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