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________________ 307 रे, अजोगिता वांछिये रे, योग्यालोक निदान रे, मुनि० ६ अचिरा नंदन तुं जयोरे, जय जय तुं जगनाथ रे, किर्तीलक्ष्मी मुज घणी रे, जो तुं चडीओ हाथ रे मुनि० ७ (1) श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन ॥१॥ वागी वागी रे अमरी वीणा वाजे, मृदंग रणके रे! ठमक पाव विछुवा ठमके, भेरी भणके रे...वागी० ॥२॥ घम घम घम घुघरी घमके, झांझरी झमके रे! नृत्य करंति देवांगना जाणे, दामनी दमके रे...वागी० ॥३॥ दौं दौं किदौ दुंदुभी बाजे, चुडी खलके रे। फुदडी लेतां कुमति फरके, झाल झबुके रे...वागी० ॥४॥ कुंथु आगे इम नाच नाचे, चालने चमके रे, उदय प्रभु बोधी बीज आपो, ढोलने ढमके रे...वागी० ॥५।। (2) श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन तुज मुद्रा सुंदर, रुप पुरंदर, मोहीया साहिबजी तुज अंगे कोडी गमे गुण गिरुआ, सोहीया साहेबजी, तुम अमीय थकी पण लागे मीठी, वाणी रे साहेबजी, विण दोरी सांकळ लीधु मनडु ताणीरे साहेबजी ॥२॥ खिण खिण गुणगाउं पाउं तो, आराम रे साहेबजी, तुज दरिशन पाखे न गमे बीजा, काम रे साहेबजी ॥३॥ मुज हृदय कमल विच वसीयुं, ताहरु नामरे साहेबजी, तुज मुरति उपर वारुं तन मन, दामरे, साहेबजी. ।।४।। करजोडीने निशदिन उभो रहुँ, तुज आगेरे साहेबजी, तुज मुखडु जोता भूख तरस, नवि लागे रे साहेबजी, ॥५॥ में कयांयन दीठी जगमां ताहरी, जोडरे, साहेबजी, तुज दीठे पुरण पहोंता मननां, कोड रे साहेबजी, ॥६॥ मुज न गमे नयणे दीठा बीजा, देव रे साहेबजी हवे भवो भव होजो मुजने ताहरी सेवा रे साहेबजी, ॥७॥ तुं परम पुरुष परमेश्वर अकल स्वरुप रे साहेबजी, तुज चरणे प्रणमें सुरनर केरा भुप रे साहेबजी, ॥८॥ तुं कापे भव दुःख आपे परमानंद रे साहेबजी, बलीहारी ताहरी प्रभुजी, कुंथु जिणंद रे साहेबजी, ॥६॥ मन वांछित फळीयो मळियो तुं मुज, जाम रे साहेबजी, इम पभणे वाचक विमल विजयनो राम रे साहेबजी ॥१०॥
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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