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________________ 296 करीया; घोर संसार सागर तरीया, दादाजीरे, द्यो दरिसण अकवारी. ॥६॥ क्रोध मान माया मद छाकयो, राग द्वेश विषय नवि थाकयो; तृष्णा तरुणी रस चाख्यो, अथडायो रे, योनी अनंती वारी. ॥७॥ हुं कुमती कदाग्रहे भरीयो, धूर्त लोभ अरि मुज नडीयो; गुण श्रेणी चढी फरी पडीयो, नथी आरो रे बाल करे पोकारी रे. ॥८॥ शांत दान्त वृद्धि जयकारी, गुरु कपूर विजय बलीहारी; ल्यो पून्यने भवथी उगारी, आव्यो शरणे रे, विलंब न करशो लगारी. ॥६॥ (5) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : विनति अवधारे रे पुरमांहे) सुणो शांति जिणंदा रे, तुम दीठे आणंदारे, दुर टले भवफंदा दरिसण देखतां रे. ॥१॥ मुद्रा मनोहारी रे, त्रिभुवन उपकारी रे, प्यारी वळी लागे सहुने पेखतां रे०...॥२॥ सौम्यताओ शशी नासी रे, भमे उदासी रे, आव्यो मृग पासे अधिकाई जोवतो रे. ॥३॥ तेजे भाण भागो रे, आकाशे जई लाग्यो रे, धरे प्रभु रागे मोहतो रे. ॥४॥ परमाणुं जे शांत रे, निपनी तुम कांत रे, टळी मन भ्रांत परमाणुं अटलो रे. ॥५॥ देव जोतां कोडी रे, नावे तुम होडी रे, नमे कर जोडी सुर जे भला रे. ॥६॥ जनमे इति वारी रे, षटखंड भोग धारी रे, थया व्रतधारी नारी परिहरी रे. ॥७॥ वरसी दान वरसी रे, संजम श्रेणी फरसी रे, करी करम राशी नरसि तेथयी थया रे. ॥।॥ ध्यानानल जोगे रे, आतम गुण भोगे रे, रोगे ने सोगेथी तुं दुरे रहे रे. ॥६॥ प्रणमें प्रभु पाया रे, खिमा विजय गुरुराया रे; तुम गुण प्रतिभाया जस ते लहे रे. ॥१०॥ __(6) श्री शान्ति जिन स्तवन शांतिकुमार सोहामणा रे, हुलरावे अचिरा माय रे, माहरो नानडीयो, तुज आगे इन्द्रो नमे रे, इन्द्राणी प्रणमे पाय रे० मा०...हु०...मा० ॥१॥ छप्पन दिशीकुमरी मली रे, नवरावी तुज साथ रे; बांधी सर्व शु भौषधि रे, रक्षा पोटली हाथ रे० मा०...हु०...मा० ॥२॥ कुलध्वज कुलचुडामणी रे, अम कुल कानन मेहरे; तुज इडा पीडा पडो रे, खारा समुद्रने छेह रे मा०...हु०...मा० ॥३॥ आवी बेसो गोदमां रे, भीडुं हृदय मोजार रे;
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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