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________________ 277 __(1) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन प्रभुजी धरशो ना दिलमां रीश, जिणंदजी धरशो ना दिलमां रीश, तुं दायकने हुं मांगण छं. मांगणीतो मांगीश हठीलो थईने हठ मांडिश...प्रभुजी० ॥१॥ आज काल कही कही ललचावो, दीधुं न हाथथी दान, फरी फरी फेरा फरी थाकयो, तोओ ना दीधुं ध्यान; हवे हुँ घर घर घरj घालीश,...प्रभुजी० ॥२॥ मोख नथी हमणां देवानो, ओम मुखे कहेता शुं थाय, सूडी वच्चे सोपारी आवी अवो बन्यो छे न्याय, छतां नही लीधा विना जइश,...प्रभुजी० ॥३॥ ना कहेता मान रहेता, देता न चाले जीव; दातारथी पण कंजूश सारो, ना कही आपे सदैव, प्रभुजी खाली केम काढीश...प्रभुजी० ॥४॥ ओर्छ थई जाशे ओवा भयथी, देता करो छो विचार; मांग जे मांगे आपु तुजने, ते केम उच्चर्या उच्चार, हवे तुं मुजने | आपीश...प्रभुजी० ॥५॥ दायक बिरुद्ध घरीने बेठा, कल्पतरुनी जेम, हवे याचकनुं वांछित देतां, गुडा घालो छो केम, जगतपति बिरुद केम पाळीश...प्रभुजी० ॥६॥ धार्याथी तने ओछु आपीश, काढीश नहिं नीराश, आटलुं पण नहिं मुखथी बोलो, शुं अम सरसे आश, वळी मुज दारिद्र शुं टाळीश...प्रभुजी० ॥७॥ तुं दारिद्र दावानल समाववा, समजी मेघ समान, वरस वरस कहेतो हुं मुखथी धरुं हुं ताहरुं ध्यान, छतां मने कयां सुधी सतावीश,...प्रभुजी० ॥८॥ वितराग पद पामी पोते, भक्तने रागी कीध, रागी ने शुं आपे निरागी, हवे मे समजण लीध, मुनिश्वर इच्छाने वाळीश, प्रभुजी० ॥६॥ नरपति चंपा नगरी केरा, वासुपूज्य परमेश, चतुर विजयनो किंकर कहे छे, दर्शन ताहरुं हमेश, मळो. मुज उमेद दिल राखीश, प्रभुजी० ॥१०।। (2) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन (राग-सावन का महिना) वासुपूज्य स्वामीजीने करुं रे प्रणाम, मूरति सुरति नीरखी हरख्यो, मारो आतमराम, मोरा सुखना ओ ठाम (२) मीठी आंखे देखत मोरी भावठ गई तमाम० (२) (१) अचरिज तारी वार्तामा थयो रे करार, मूढ पणे विसारी मूकी नवि किया निरधार, मारो० (२) अवगुण मुजमां छे घणां पण साहेब न आणो मन, लोक कलंकित थापीयो रे, पण शशीधर राख्यो कंत
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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