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________________ 262 रे लो। हारे मारे जड चेतन भिन्नाभिन्न नित्यानित्य जो। रूपी अरूपी आदि स्वरूप आपापणे रे लो। ४ हारे मारे लखगुण दायक लखमणा राणी नंदजो। चरण सरोरूह सेवा मेवा सारखी रे लो। हारे मारे पंडित श्री गुरू क्षमाविजय सुपसाय जो। मुनि जिन जंपे जगतमां जोतां पारखी रे लो। ५ (10) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन जिनजी चंद्रप्रभ अवधारों के, नाथ निहाळजो रे लोल, बमणी बिरूद गरीब निवाज के, वाचा पाळजो रे लोल...हरखे हुं तुम शरणे आव्यो के, मुजने राखजो रे लोल, चोरटा चार चुगल जे भुंडा के, ते दूरे नाखजो रे लोल...प्रभुजी पंचतणी परशंसा के, रूडी थापजो रे लोल, मोहन महेर करीने दरिसन के, मुजने आपजो रे लोल...तारक तुम पालव में झाल्यो के, हवे मुने तारजो रे लोल, कुतरी कुमति थई छे केडे के, तेहने वारजो रे लोल...सुंदरी सुमति सोहागण सारी के, प्यारी छे घणी रे लोल, तातजी ते विण जीवे के, चौद भुवन कर्यु आंगणुं रे लोल...लखगुण लखमणा राणीना जाया के, मुज मन आवजो रे लोल, अनुपम अनुभव अमृत मीठी के, सुखडी लावजो रे लोल...दीपती दोठसो धनुष प्रमाण के, प्रभुजीनी देहडी रे लोल, देवनी दश लखपूरव मान के, आयुष वेलडी रे लोल...निर्गुण नीरागी पण हुं रागी के, मनमाहे रह्यो रे लोल, शुभगुरू सुमतिविजय सुपसाय के, रामे सुख लह्यो रे लोल.... (11) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन (सुमतिनाथ गुण शुं मिलीजी) श्री चंद्रप्रभ माहराजी, तुमे छो दीनदयाळ, महेर धरो मुज उपरेजी, विनती मानो कृपाल, ससनेहा प्रभु शुं लाग्यो अविहड नेह, जिम चातक मन मेह, स० १ सज्जनशुं जे नेहलोजी, करतां बमणो रंग, दुर्जनजनशुं प्रीतडीजी, क्षण क्षणमां मन भंग स० २ उत्तम जनशुं रूसणांजी, तेह पण भलां निरधार। मूरख जनशुं गोठडीजी, करतां रस न लगार। ३ मनमा इम जाणी करीजी, आव्यो तुमारी पास । निरवहीए हवे मुजनेजी, जिम पहोंचे मननी आश। स० ४बहुलपणे शुं दाखीयेजी, तुमे छो बुद्धि निधान । प्रेम विबुधना भाणशुंजी, राखो प्रीत प्रधान । स० ५
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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