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________________ 256 सुगुणा साहिबा तुम विना, कुण करशे हो सेवकनी सार के; आखर तुमहीज आपशो, तो शाने हो करो छो वार के,...श्री सुपास०. ॥३॥ मनमा विमासी शुं रह्या, अंश ओछु हो ते होय महाराज के निर्गुणीने गुण आपतां, ते वाते हो नहि प्रभु लाज के०...श्री सुपास०. ॥४।। मोटा पासे मांगे सहु कुण करशे हो खोटानी आश के; दाताने देतां वधे घj, कृपणने हो होय तेहनो नाश के,...श्री सुपास०. ॥५॥ कृपा करी सामुं, जो जुओ, तो भांजे हो मुज कर्मनी जाल के; उत्तर साधक उभां थकां, जिम विद्या हो सिद्ध होय तत्काल के; जाण आगल कहेवु किश्युं पण अरथी हो करे अरदास के खिमा विजय पय सेवतां, जस लहिये हो प्रभु नामे खास के०...श्री सुपास०. ।।७।। (3) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन कयुं न हो सुनाई स्वामि जैसा गुन्हा क्यां? कीया, जैसा गुन्हा क्यां? कीया, औरोकी सुनाई जावे, मेरी बारी नहि आवे, तुम बिन कौन मेरा, मुझे कयुं भूला दीया...कयुं० ॥१॥ भक्त जनोकुं तार दीया, तारने का काम लीया; बिन भक्तिवाला मोंपें, पक्षपात कयुं किया..क्युं ?० ॥२॥ राय रंक अक जाणो, मेरा तेरा नहीं मानो, तरण तारण जैसा बिरूद, धार क्युं ? विसार दिया क्युं० ॥३॥ गुना मेरा बक्ष दीजे, मों में अतिरहेम कीजे, पक्का ही भरोसा तेरा, दिलोमें जमा लिया, कयु. ॥४|| तुं ही अक अंतरजामी, सुणोश्री सुपार्थ स्वामी; अबतो आशा पुरो मेरी, कहना थाशो कह दीया..कयु..॥५॥ शहेर अंबालाभेटी, प्रभुजीका मुख देखी; मनुष्य जन्मका लाहा, लेना थासो ले लीया..क्युं० ॥६॥ उन्नीसो छासठ छबीला, दीपमाला दिन रंगीला; कहे वीर विजय प्रभु, भक्ति में जगादीया...क्युं ?० ॥७॥ (4) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन मुज मन भ्रमरे, प्रभु गुण फूलडे, रमण करे दिनरात रे, सुणजो स्वामी सुपार्थ सोहामणा, करजोडी करुं वात रे....१ मनडुं ते चाहे मळवा भणीजी, पण दीसे छे अंतराय रे, जीव प्रमादी कर्म तणे वसे, ते किम मळवू थाय रे.... २ लाख चोराशी जीवायोनि मांहे, भव अटवी गति चार रे, काळ
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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