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________________ 253 जीवित धन्य धन्य हो.... (५) धन्य दिवस धन्य ते घडि, धन वेळा मुज एह हो मन वच कायाए तारीए, जो सेवा करीए तुज हो.... (६) महेर करी प्रभु माहरी, पूरजो वांछित आश हो 'ज्ञानविमल' गुरु शिष्यने, जो तुम चरणे वास हो....(७) ( 6 ) पद्मप्रभ जिन स्तवन (राग : मैं देखुं जीस और सखी रे....) अजब बनी रे, मेरे अजब बनी रे, प्रभु साथै प्रीति अजब बनी अजब बनीरे प्रभु साथै प्रीति तोमुज दुर्गतिनी शी भिती देखी प्रभुनी मोटी रीति, पामी पूरण रीति प्रतीति.... (१) जे दुनियामां दुर्लभ नेह, ते में पामी प्रभुनी भेट, आळसुने घरे आवी गंग, पाम्यो पंथी सफर तुरंग,...(२) नीरसे पाम्यो मानस तीर, वाद वदंता वाधी भीर, चित्त चोर्यो सज्जननो संग, अणचिंत्यो मिलियो चढते रंग.... (३) जिम जिम नीरखुं प्रभु मुखनूर, तिम तिम थाउं आनंद पूर सुणतां जनमुख प्रभुनी वात, हरखे मारा साते धात....(४) पद्मप्रभु जिननां गुण गाता, लहीए शिवपदवी असमान, 'विमल विजय' वाचकनो शीश, 'रामे' पायो परम जगीश.... ( ५ ) ( 7 ) पद्मप्रभ जिन स्तवन ( राग : तुम दरिसण भले पायो ) प्रभु तेरी मुरति मोहनगारी, (२) पद्म प्रभु जिन तेरे ही आगे, और देव न छबी हारी,.... ( १ ) समता शीतल भरी दोय, अखीयां, कमल पंखरीया वारी, आनन निराका चंद सो राजे, वानी सुधारस सारी.... (२) लंछन अंग भर्यो तन तेरो, सहस अठ्ठोतर भारी, भीतर गुण का पार न आवे, जो कोउ कहत विचारी.... (३) शशि रवि हरि को गुण लेइ, निर्मित गात्र संचारी, वचन बुलंद कहांसे आये, ए मुज अचरिज भारी.... (४) यो गुण अनंतभरी छबी प्यारी, परम धरम हितकारी, कवि अमृत कहे चित्त अवतारी, बिसरत नहीं बीसारी,.... (५) ( 8 ) पद्मप्रभ जिन स्तवन (राग - पद्मप्रभुनुं स्तवन) धन धन संप्रति साचो राजा, जेणे कीधा उत्तम काम रे, सवा लाख प्रासाद करावी, कलियुगे राख्युं नाम रे, । १ वीर संवत्सर संवर बीजे, तेरोत्तर रविवारे रे, महासुदि आठमे बिंब भरावी, सफल कीधो अवतार
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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