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________________ 251 रे। स० २ यथा प्रवृत्ति करण ते, फरसे अनंतीवार लाल रे । दरिशन ताहरूं नवि लहे, दूरभव्य अभव्य अपार लाल रे। स० ३ शुद्ध चित्त मोगर करी, भेदी अनादिनी गांठ लाल रे। नाण विलोचने देखीये, सिद्धि सरोवर कंठ लाल रे । स० ४ भेद अनेक छे तेहना, बृहत ग्रंथ विचार लाल रे। सुसंप्रदाय अनुभव थकी, धरजो शुद्ध आचार लाल रे। स० ५ अहो अहो समकितने सुण्यो । महिमा अनोपम सार लाल रे। शिवशर्म दाता एह समो, अवर न को संसार लाल रे । स० ६ श्री सुमतिजिनेसर सेवथी, समकित शुद्ध ठराय लाल रे। कीर्तिविमल प्रभुनी कृपा, शिवलच्छी घर आय लाल रे। स० ७ (1) पद्मप्रभ जिन स्तवन पद्मप्रभ प्राणसे प्यारा, छोडावो कर्मकी धारा; करम बंध तोडवा घोरी, प्रभुजीसे अर्ज है मोरी० पद्म० ।।१।। लघु वय ओक तें जीया, मुक्तिमें वास तुम कीया; न जाणी पीर ते मोरी, प्रभु अब खेंच ले दोरी० पद्म० ।।३।। विषय सुख मान मो मनमें, गयो सब काल गफलतमें; नरक दुख वेदना भारी निकलवा ना रही बारी० पद्म० ॥४॥ परवश दिनता कीनी, पापोकी पोट शिर लीनी; न जाणी भक्ति तुम केरी, रह्यो निशदिन दुःख घेरी...पद्म० ॥५॥ इसविध विनति मोरी, करुं में दोय कर जोडी; आतम आनंद मुज दीजो, वीरनुं काम सब कीजो...पद्म० ॥६।। (2) पद्मप्रभ जिन स्तवन पद्मप्रभ जिन भेटीये रे...साचो श्री जिनराय दुःख दोहग दूरे टळे रे, सीजे वांछित काज, भविकजन पूजो श्री जिनराय..भविका० आणी मन अति ठाय० ॥१॥ सिवराना वश ताह रे रे, रातो तेणे तुज अंग, कमल रहे निज पगतले रे, ते पण तिण हीज रंग० ॥२॥ रंगे रातो जे अछे रे, विचे रह्या थिर थाय, तुं रातो पण साहिबा रे, जई बेठो सिद्धिमाय० ॥३॥ अधिकांई ओ तुम तणी रे, दीठो में जिनराय, ठकुराई त्रण जगतणी रे, सेवा करे सुरराज० ॥४॥ देवाधिदेव मे ताहरु रे, नाम अछे जगदीश, उदारपणु पण अति घणुं रे, रंक ने करो क्षण इस० ॥५॥ अहवी करणी तुमतणी रे, देखी सेवू तुज, केसर विमल कहे साहिबा रे, वांछित पुरो मुज० ॥६।।
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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