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________________ 217 (10) श्री कुलपाकजी तीर्थमंडन श्री माणिक्यस्वामी (आदिश्वर भगवान-) (राग : करे विनती चंदनबाला वीरने रे) जई, जई, जई, जुगते तैलिंग देशमां रे, जिहां माणिकय स्वामि आदिश्वर देव; पूजा करीये आंगि रचीये सुंदर वेशमां रे. (१) ___ साखी :-भरतराय अष्टापदे, स्थापे श्री जिनचंद, विद्याधर आवी करे, दर्शन हर्ष उमंग; मूर्ति लई जावे त्यांथी निज धाममां रे, करें पूजन प्रभुनुं त्रण काळ, जईअ० (२) साखी :-नारदमुनि ओक दिवसे, विद्याधरनी पास, अद्भुत प्रतिमा देखीने, वंदे धरी उल्लास; मूर्ति संबंधी वात करे इन्द्रने रे, मूर्ति मंगावे छे इन्द्र निजपास, जईओ० (३) साखी :-सौधर्म देवलोकमां, माणिकय स्वामि देव, पधरावी पूजन करे, शक्र सहित ततखेव; घणो काळ पूजाणी मूर्ति देवलोकमां रे, नारद मुखथी सुणे मंदोदरी अम; जईओ० (४) साखी :-मूर्तिमां ललचाई गयुं, मंदोदरीनुं मन, प्रतिमा न मळे त्यां लगे, लेवू न मारे अन्न; ओवो गाढ अभिग्रह लीधो त्यारे रावणे रे, आराधन कर्यु इन्द्रनुं खास. जईओ० (५) साखी :-तुष्टमान थई ने दीये इन्द्र मूर्ति धरी ख्याल, मंदोदरी हर्षित थई, पूजन करे त्रणकाल; अवो अभिग्रह पूरण थयो आकरो रे, प्रभुनी भक्ति तणोओह प्रभाव; जईअ० (६) साखी :-राम अने रावण तणुं, युद्ध थयुं अतिघोर, त्यारे दरियामां धरी, प्रतिमा न लीये चोर, लवणाधिप पूजे तिहां प्रभुने प्रेमथी रे, घणो काळ पूजाणी समुद्रनी मांय. जईओ० (७) साखी :-श्री कर्णाटक देशमा, कल्याणी नगरी कहेवाय, राजकरे भूपति तिहां, शंकर नामे राय, महामारी रोग उपन्यो ते देशमां रे, त्यारे पद्मावतीजे स्वप्न कह्यु अम; जईओ० (८) साखी :-मंदोदरी महाराणीओ, मूर्ति अतिमनोहार, दरियामां पधरावी
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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