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________________ 199 निहाळुं जी; तो पण चरण समीपे बेठो, मननो संशय टाळुंजी...||४|| सोवन कारण पहेली भुमी, अभय अद्वेष अखेदजी, धर्मरत्न पद ते नर पामे; भुगर्भ रहस्यनो भेदजी त्रिभुवन तारक तीर्थ तलाटी...॥५॥ इति. ( 3 ) पुंडरीकस्वामी स्तवन (राग : राखना रमकडा) धन धन पुंडरीक स्वामीजी, भरत चक्री नृप नंदरे, दीक्षा ग्रही प्रभु हाथथी, पुजित गणधर वृंदरे धन० ||१|| आदिजिन वदन कमळथी, निसुणी सिद्धाचल महिमा रे; आव्या गिरिवर भेटवा, विस्तर्यो तिर्थनो महिमा रे धन० ||२|| पावन पुरुष पसायथी, पृथ्वी पवित्र थई जायरे; तेथी पुंडरीक नामथी, आज लगी पूजाय रे धन० || ३ || पद्मासन प्रतिमा बनी, प्रभु सन्मुख सोहाय रे; पूजा विविध प्रकारनी करता भवि समुदाय रे धन० || ४ || पांचक्रोड मुनिवरनी साथे, सिध्यां पुंडरिक स्वामरे, धर्म रत्न पद आपजो, मुज मन मोटी आश रे धन धन पुंडरीक स्वामीजी ... ॥ ५॥ इति. (4) पुंडरिक स्वामिनुं स्तवन ओक दिन पुंडरिक गणधरू रे लाल, पूछे श्री आदिजिणंद - सुखकारी रे; कही ते भवजल उतरी रे लाल, पामीश परमानंद भव वारी रे. अक० १ कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, ज्ञान अने निरवाण - जयकारी रे; तीरथ महिमा वाधशे रे लाल, अधिक अधिक मंडाण - निरधारी रे. अक० २ इम निसुणीने इहां आवीया रे लाल, घाति करम कर्यां दूर-तम वारी रे; पंच क्रोड मुनि परिवर्या रे लाल, हुआ सिद्धि हजूर - भव वारी रे. अक० ३ चैत्री पूनम दिन कीजीओ रे लाल, पूजा विविध प्रकार - दिल धारी रे; फळ प्रदक्षिणा काउस्सग्गा रे लाल, लोगस्स थुई नमुक्कार नर-नारी रे अक० ४ दश वीशत्रीश चाळीश भलां रे लाल, पचास पुष्पनी माळ अति सारी रे; नरभव लाहो लीजीये रे लाल, जेम होय ज्ञान विशाळ - मनोहारी रे. अक ओक दिन पुंडरिक गणधरू रे लाल० ५ (5) रायण पगलानुं स्तवन नीलुडी रायण तरु तळे - सुणसुंदरी, पीलुडा प्रभुना पाय रे गुणमंजरी;
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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