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________________ 183 सूरजकुंडथी रे लाल, प्रदक्षिणा देवाय...रूडा० निर्मल चंदन तलावडी रे लाल; जीहा सीध्या ऋषी राय....रूडा पंथीडा...॥१४॥ रयणमय प्रतिमा मूलथी रे लाल, पांचशे धनुष प्रमाण रूडा० नमण लहीजे तेहy रे लाल, उलखा जोली तसनाम.... रूडा पंथीडा...॥१५॥ सिद्धवड तळे पगलां नमि रे लाल, चढीय आदिपुर आज रूडा० फरीने ऋषभ जिन भेटतां रे लाल; मोरा सिध्या सघळा काज....रूडा पंथीडा...।।१६।। अणी पेरे देई प्रदक्षिणा रे लाल; फरसे विमलगीरी जेह; नरक तिरिय गति न रहे रे लाल; शुभ गति पामे तेह....रूडा पंथीडा...॥१७॥ सिद्ध अनंत तिहां थया रे लाल; पाम्या भवनो पार....रूडा० प्रथम जिणंद समोसर्या रे लाल, पूरव नव्वाणुं वार....रूडा पंथीडा...॥१८॥ धन्य दिन वेळा घडी रेलाल, सफळ गणुं अवतार रुडा... नयणे निरख्यो नेहशुं रे लाल, जीहां नाभिनरिंद मल्हार....रूडा पंथीडा० ॥१६।। नीतुं नीतुं किजे, वंदना रे लाल; प्रह समे उगते सूर तस. धीर विमल कवि राजनो रे लाल; कहे नय विमल शुं शिष्य....रूडा पंथीडा... ॥२०॥ इति (49) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : ओक, दो, तीन, चार,...) सुण जिनवर शेजा धणीजी, दास तणी अरदास; तुज आगळ बाळक परेजी, हुं तो करूं वेखास रे; जिनजी! मुज पापीने तार. तुं तो करुणारसे भर्योजी, तुं सहुनो हितकार रे, जिनजी! मुज० १ हुं अवगुणनो ओरडोजी, गुण तो नहीं लवलेश; परगुण पेखी नवि शकुंजी, केम संसार तरीशरे? रे जिनजी! मुज० २ जीव तणां वध में कर्यां जी, बोल्या मृषावाद; कपट करी परधन हर्या जी, सेव्या विषय संवाद रे. जिनजी! मुज० ३ हुं लंपट हुं लालचुं जी, कर्म कीधां केई क्रोड; त्रण ,भुवनमां को नहींजी, जे आवे मुज जोड रे. जिनजी! मुज० ४ छीद्र परायां अहोनिशेजी, जोतो रहुं जगनाथ; कुगतितणी करणी करीजी, जोड्यो तेहशुं साथ रे जिनजी! मुज० ५ कुमति कुटिल कदाग्रहीजी, वांकी गति मति मुज; वांकी करणी माहरीजी, शी संभळा, तुज रे. जिनजी! मुज० ६ पुन्य विना मुज प्राणीओजी, जाणे मेलु रे आथ; उंचा तरुवर मोरीयांजी, त्यांही पसारे हाथ रे. जिनजी! मुज० ७ विण खाधा विण भोगव्याजी, फोगट कर्म बंधाय; आर्तध्यान मिटे नहींजी,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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