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________________ 174 दरबार. हां हां दादाने दरबार, दादा आदिश्वरजी० ५ पांगळो मांगे कंचनकाया, आंधळो मांगे आंख; हुं मांगु चरणोनी सेवा, दादा ने दरबार. हां हां दादाने दरबार, दादा आदिश्वरजी० ६ हीरविजय गुरु हीरलो ने, वीर विजय गुण गाय, शत्रुजयना दर्शन करतां आनंद अपार. हां हां आनंद अपार. दादा आदिश्वरजी, दूरथी आव्यो दादा दरिशन द्यो. ७ (31) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : दुर्गा) कयुं न भये हम मोर विमलगिर, कयुं न भये हम मोर. १ सिद्धवड रायण रूखकी शाखा, झुलत करत झकोर. विमल० २ आवत संघ रचावत अंगीआ, गावत गुण घमघोर. विमल० ३ हम भी छत्र कला करी निरखत, कटने कर्म कठोर. विमल० ४ मूरत देख सदा मन हरखे, जैसे चंद चकोर. विमल० ५ श्री रिसहेसर दास तुमारो, अरज करत कर जोर. विमलगिर, कयुं न भये हम मोर...६ (32) श्री सिद्धाचल स्तवन सिद्धाचलनो वासी प्यारो लागे मोरा राजींदा. १ इणे रे डुंगरियामां झीणी झीणी कोरणी, उपर शिखर बिराजे. मोरा ०२ काने कुंडल माथे मुगट बिराजे, बांहे बाजुबंध छाजे. मोरा ०३ चौमुख बिंब अनोपम छाजे, अद्भुत दीठे दुःख भांजे. मोरा ०४ चुवा चुवा चंदन और अगरजा, केसर तिलक बिराजे. मोरा ०५ इणेगिरि साधु अनंता सिध्या, कहेतां न आवे पार. मोरा ०६ ज्ञानविमल प्रभु ओणी पेरे बोले, आ भवपार उतारो. मोरा ०७ (33) श्री सिद्धाचल स्तवन आवी रूडी भगती में पहेला न जाणी, पहेला न जाणी रे प्रभुजी, पहेला न जाणी; संसारनी मायामां में वलोव्युं पाणी. आवी० १ शत्रुजय गिरिवर जईओ, नवाणुं करीओ; आतमशुद्ध करीने से तो पावन थईओ. आवी० २ ऋषभ जिणेसर स्वामी मारा, भेटवा भले भावे; नाभिनरेसर नंदन दीठा, हरख्यो ते वारे. आवी० ३ चोराशी लाख जीवायोनीमां, भमियो काल
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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