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________________ सतत पवित्र एवा वैराग्यजळथी निर्मल बनेला-संयमना खोळामां अलंकृत थवानी तीव्र भावना गुलाब पुष्पनी सुवासनी जेम चोमेर प्रसरतां स्वजनो सजाग बनी गया। ते समये बाल दिक्षानो विरोध तेथी बन्ने बेनडीओनी संयमनी वात जाणी विरोधनो वावाझोडो वींझायो ने संयमना पथ पर संचरवा सज्ज बनेली बन्ने भगिनी बेलडीनी वैराग्यनी ए इमारत धराशयी थई गई। कागर्नु बेसवु ने डाळनुं पडवू नी जेम आ तरफ वैराग्यभावनामां म्हालतां मातुश्री जतनाबेन एक सुंदरी नामनी बाळकीनो जन्म आपी २ वर्षनी टुंकी मुदतमां कर्मराजानो भोग बनी वैराग्यनी ज्वलंत ज्योत साथे आ पृथ्वीतलपरथी विदाय लई लीधी। तेथी घरनो हवे बधो भार मोटी पुत्री शांति पर आवी पड्यो। बस, संसारना अमन-चमनने सखीओना सथवारे अटवाई गयेली, शांतिनी वैराग्यनी गांठ ढीली पडवा मांडी, ने एक दिवस पिता चंदनमलजीने साफ सुणावी दीधुं मारे हवे कोई संयमनी भावना रही नथी। आ वात सांभळता पिता चंदनमलजी पर तो व्रजनो घा जाणे थयो जेटलुं दुःख धर्मपत्नीनां मृत्युथी न थयुं तेटलुं दुःख आ वचन सुणता थयुं। छता पोतानी जातने मोहमायाना वींझाता पवनमां अडीखम राखी पुत्र कुंदनमलजी ने पुत्री वसंति-सुंदरीना लालन पालन साथे तेमना वैराग्यने सुरक्षित राखवा माता पितानी बन्नेनी जवाबदारी तमामे तमाम जाते वहन करवा संयम अंगीकार न करूं त्यां सुधी ठाम चौविहार एकासणा करवानो अभिग्रह साथे भगीरथ पुरुषार्थ आदर्यो। गमे तेवा कपरा समयमांथी पसार थवा छतां एक पण धर्मानुष्ठान चुकता नहि। ज्यारे मोटी पुत्री संसारना संगे सोळ शणगार सजी जवा सज्ज बनी त्यारे पुत्र अने पुत्रीओ साथे चंदनमलजी उपाश्रयमां आवी ६४ प्रहरी पौषध स्वीकारी लीधुं केवी संयमनी सतत भूख । ___“श्रेयांसि बहु विघ्नानि": सारा कार्योमा घणां विघ्नो आवे तेम अनेक विनोना वमळोमांथी पसार थतां थतां ज्यारे जीवननी सार्थकतानी छडी पोकाराई-शमणा साकार थवानी घडी आवी पहोंचता हर्षनी नदीओनां नीर नयणोमां उभराई गया।
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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