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________________ 167 भर्यो वाटको, पुष्पो चडावु प्रभु आज रे, आदिश्वर दादा ८ हिरविजय गुरू हिरलो, विरविजय गुण गाय रे, आदिधर दादा० ६ (17) श्री सिद्धाचल स्तवन सहु चालो सिद्धगिरि जईओ. गीरी भेटी पावन थईओ, सोरठ देशे यात्रानुं मोटुं धाम छे, ॥१॥ ज्यां तळेटी पहेली आवे, गीरी दरिशन वीरला पावे, प्रभुना पगलां पुनित ने अभिराम छे, ॥२॥ ज्यां गिरिवर चडतां समीपे, देवालय दिव्यज दीपे, बंगाली बाबुनु, अविचल अतो नाम छे, ॥३।। ज्यां कुंड विसामो आवे, थाकयांनो थाक उतारे, परबो रुडी, पाणीनी ठामोठाम छे, ॥४॥ ज्यांहडो आकरो आवे, केडे हाथ दई चढावे, ओवी देवी, हिंगलादे जेनुं नाम छे, ॥५॥ ज्यांगिरिवर चडतां भावे, राम पोळ छेल्ली आवे, डोलीवाळा नां, विसामांनुं ठाम छे. ॥६।। ज्यां नदि शेव्रुजी वहे छे, सूरज कुंड शोभा दे छे, नाहयो नहीं, तेनुं जीवन बे बदाम छे, ॥७॥ ज्यां सोहे शांति दादा, श्री सोलमा त्रिभुवन त्राता, पोळे जाता, सौ पहेला प्रणाम छे, ॥८॥ ज्यां चक्रेश्वरी छे माता, वाघेश्वरी दे सुखशाता, कवड-जक्षादि, सौदेवता तमाम छे, ॥६॥ ज्यां सोहे पुंडरीक स्वामि, गिरुआ गणधर गुणधामी. अंतरजामी, आतमना आधार छो, ॥१०॥ ज्यां रायण छांय निलुडी. प्रभु पगला परे परे रुडी. शीतलकारी, ओ वृक्षनो विश्राम छे. ॥११॥ ज्यांनिरखे छे नव ढूंको. पातिकनो थाये भुक्को, दिव्य दहेराना, अलौकिक काम छे. ॥१२॥ ज्यां गृहीलींग मुनि अनंता, सिद्धिपद पाम्या संता, पंचम काले अ, मुकितनु मुकाम छे. ॥१३॥ ज्यां ज्ञान विमल गुण गावे, ते लाभ अनंता पावे, यात्रा करवा, हियडानी मोटी हाम छे. ॥१४॥ (18) श्री सिद्धाचल स्तवन मने सिद्धाचल देखाड, मने विमलाचल देखाड, तारो गुण मानू लाल, मारा ते भाइ सोडला रे, अना गुण मानुं लाल; हुं छु ओलंगी उछळी रे, मने आपजो ताहरी पांख,...तारो गुण० ॥१॥ आदिश्वर भेटुं उडीने रे, भांगी मारा भवनी धांख; वैशाख जेठनी वादळी रे, मारा संघ उपर करो छांय... तारो गुण० ॥२॥ पवन लागुं तोरा पाउले रे, मारा संघने होजो सुपसाय;
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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