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________________ प्रत्येनी लागणी दिन-प्रतिदिन वृद्धि पामती जती हती। पण माता-पितानो प्रेम पुत्रने संसारमां चोंटाडी राखवानो होय तेम चंदनमलजीनी भवितव्यता पण कंईक एवी के १४ वर्षनी वये सं. १६८६ वै. सु. ६ना सांडेरावना वतनी उमेदमलजीना सुपुत्री जतनाबेन साथे लग्नग्रंथीथी जोडाया ___चंदनमलजी-जतनाबेननी रत्नकुक्षीए ३ पुत्री पर थयेल एक रुडोरुपाळो कुन्दन-सुवर्ण सम पुत्ररत्ननी प्राप्ति थता तेनुं नाम कुन्दनमलजी राख्युं । शान्ति-वसंति सुंदरी (डाही) पुत्रीना नाम रखाया। ___ इ. सं. १६४० मां रेल्वे आवी ते पहेला दादा भेरोजी साथे जेठमलजी, चंदनमलजी अमदावाद सुधी चालीने आव्यां पछी मुंबई ट्रेनमां आव्या। पिताश्रीए नलबजारमां सोना चांदिनी दुकान करी अने चंदनमलजी मित्र संगाथे कोल्हापुर लक्ष्मीपुरीमा दादा मुनिसुव्रत स्वामिनी प्रतिष्ठा प्रसंगे प. पू. आ.दे. प्रेम सू. म. सा. ने ते समये प. पू. पन्यासजी रामविजयजी गणिनी शुभ निश्रामां आव्या। ते समये तेमनी वैराग्य सभर जिनवाणी, श्रवण करतां करतां संयमनी भावनानुं बीज रोपायुं । त्यारबाद उत्तरोत्तर संयमनी भावनाने पुष्ट बनाववा जेम सूर्योदय थतां ज सूर्यमुखी पुष्प खीलवा लागे तेम पूज्यश्रीना दर्शन अने जिनवाणी श्रवणथी अंतरात्मामां रोपायेलुं संयम भावनारुपी बीजनां अंकुरा फुलवा फालवा लाग्या। त्यारबाद गुरु महाराज पासे ज्यारे पोताना मनना मनोरथो जणाव्या त्यारे गुरुमहाराजे पुछताछ करता संसार मंडायेलो छे जाणी कर्वा केम पाछळ परिवारनी शुं व्यवस्था विचारी छे ? तारे एकलाए संयमरुपी मोदकनो स्वाद माणवो छे? सारामां सारी मीठाई जेम बालकने-- परिवारने अपाय तो शुं तारे ते स्वाद नथी चखाडवो ? बस, गुरु महाराजना आटला वचनामृतो काफी बनी गया। संसारना मोहमायानां झेरनुं वमन करीने संयमना अमृतपान पीवानां पोताना शमणां तो तीव्रतम बन्यां पण साथे-साथे संपूर्ण परिवारने ते अमृतपान कराववाना
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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