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________________ 131 (147) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति महावीर जिणंदा, राय सिद्धार्थ नंदा, लंछन मृगेंदा, जास पाये सोहंदा; सुर नर वर इंदा, नित्य सेवा करंदा; टाले भव फंदा, सुख आपे अमंदा. १ अड जिनवर माता, मोक्षमां सुख शाता, अड जिननी ख्याता स्वर्ग त्रीजे अख्याता; अड जिनप जनेता, नाक महेंद्र याता. सवि जिनवर नेता, शाश्वता सुख देता. २ मल्ली नेमी पास, आदि अठ्ठम खास, करी ओक उपवास, वासुपूज्य सुवास, शेष छठ्ठ सुविलास, केवलज्ञान जाश, करे वाणी प्रकाश, जेम अज्ञान नाश. ३ जिनवर जगदीश, जास मोटी जगीश, नहि रागने रीश, नामीये तास शीश; मातंग सुर इश, सेवतो राति दीस, गुरु उत्तम अधीश, पद्म भाखे सुशीश. ४ (148) -श्री महावीरस्वामीनी स्तुति संसार दावानल समावे, जिम पुष्करावर्ते नीरोजी, भवभव संचित करम कठीनजर, हरवा सार समीरोजी, कपटकोट गिरवा गोली माया, मही विदारण सीरोजी, सिद्धारथ सुत त्रिशलानंदन, वीरजिन साहस धीरोजी....१ सकल सुरासर सुरगिरि आवी, सकल जिणंद नवराव्यांजी, देवविबुध ते साचा जाणो, निज सयल कर्म हरायाजी, कनक कळश जळ भरीने ऊभा, जाणे भवोदधि तरीयाजी, पूजे प्रणमे राचे माचे, शिव वधूने वरवाजी....२ आठ पहोरनो पोसह करीने, आठम तिथि आराधोजी, पांच समिति त्रण गुप्ति आराधी, अष्ट महासिद्धि साधोजी, तप जप ध्यान धरता भविजन, आठ करमने साधोजी, श्री आगम आराधी पामो, शिवसुख सार अगाधोजी....३ मातंग जक्ष महिमावंत मोटो, महिमंडलम गाजे जी, श्री सिद्धाइ कमलवासिनी, नयन कमले अति राजेजी, मुखकमल देखीने लाज्यो, चंदो दूरे माजेजी, श्री रूपविजय मुनि माणेक संघना, सारे वांछित काजजी...४ (149) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति सिद्धारथ कुल मुगट नगीनो, त्रिशला राणीए जायोजी, छप्पन दीशी कुमरी करी महोत्सव, गीत मनोहर गायाजी, हरी हरखे महोत्सव करी मेरु गीरी, आनंद अंग न मायजी, जय जय करी जननी घर मेली, प्रणमी विदारण सीरोजी, सिद्धार आवी, सकल जिनक कलश जल
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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