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________________ भवविभवविदां दत्त विश्वास विश्वा - नाप्तानाप्ताभिशंका, विमदविदमनत्रासमोहाङसमोहा. २ गौरागौराति-कीर्तेः परमपरमतहासविश्वासविश्वा,ङङदेया देयान्मुदं मे जनितजनितनू, भावतारावतारा; लोकालोकार्थ वे त्तुर्न यविन यविधुत्र्यासमानासमाना,भंगा भंगानुं योगा, सुगमसुगमयुक्, पाकृतालं, कृताङनलं, ३ लोके लोकेशनुत्या, सुरससुरसभां रंजयन्ति जयन्ति व्युहं व्युहं रिपूणां, जनभजन भवन्तागौरवा मारवामा; कान्ताङकान्ताङहिपस्ये, रितदुरितदुरन्ताहितानां हीतानां दद्यादद्यालिमुच्चै, रुचित-रुचितमा, संस्तुवे च स्तुवेच. ४ " 117 , (117) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति पास जिणंदा वामा नंदा, जब गरभे फली; सुपना देखे, अर्थ विशेषे; कहे मघवा मली, जिनवर जाया, सुर हुलराया, हुआ रमणि प्रिये, नेमी राजी, चित्र विराजी, विलोकित व्रत लीये . १ वीर ओकाकी, चार हजारे, दीक्षा धुर जिनपति, पासने मल्लि, त्रख शक साथे, बीजा सहसे व्रती; षट् शत साथे, संयम घरता, वासुपूज्य जग धणी, अनुपम लीला, ज्ञान रसीला, देजो मुझने घणी. २ जिनमुख दीठी वाणी मीठी, सुरतरु वेलडी, द्राक्ष विहासे, गई वनवासे, पीले रस सेलडी; साकर सेंती, तरणां लेती, मुखे पशु चावती, अमृत मीठं, स्वर्गे दीठं, सुरवधू गावती. ३ गजमुख दक्षो, वामन यक्षो मस्तके फणावली, चार ते बांही, कच्छप वाही, काया जस शामली; चउकर प्रौढा, नागारुढा, देवी पद्मावती, सोवन कांति, प्रभु गुण गाती, वीर घरे आवती. (118) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति जग जन भंजन मांहे जे भलियो, जोगीसर ध्याने जे कलीयो, शिव वधू संगे हलियो; अखिल ब्रह्मांडे जे जलहलियो, षटदर्शन मते नवि खलियो, बलवंत मांहे बलीयो ; ज्ञान महोदय गुण उच्छलीयो, मोह महाभट जे छलीयो, काम सुभट निर्दलीयो; अजर अमर पद भारे ललीयो, सो प्रभु पास जिनेसर मलीयो, आज मनोरथ फलीयो. १ मुक्ति महा मंदिरना वासी, अध्यात्म पदना उपासी, आनंद रूप विलासी; अगम अगोचर जे अविनाशी, साधु शिरोमणी महा संन्यासी, लोका लोक प्रकाशी; जग सघले जेहनी
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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