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________________ 110 (103) श्री शाश्वत जिन स्तुति शाश्वत जिनने करूं प्रणाम, जीम सीझे मन वांछित काम, लहिये शिवपद ठाम, जंबूद्विप जोयणलख जाण, धातकी खंड बीजो चित्त आण, पुष्करवर सुप्रमाण; वारूणीवर क्षीरवर द्वीपसार, घृतवर द्वीप इक्षुरसकार, नंदिसर निरधार, आठमो द्विप नंदी सर कहीये, जिहां शाश्वत जिन तीरथ लहीये जिन आणा शिर वहिये, H91 मध्यभागे चिहुं दिशे सार, वापी चार अच्छी मनोहार, लाख जोयण विस्तार, तेह विचे अंजन गिरि ओक, वापी दीठ लहिये सुविवेक, जिहां जिनघर ओक ओक; तस चिहुं पासे पर्वत चार, दधिमुख नामे छे सुखकार, सवि मली सोल श्रीकार, दधिमुख विचे रतिकर दोय दोय, वापी दीठ आठ आठ नग जोय, सवीमली बत्रीश होय ॥२॥ अंजन गिरिओ चार चइत्त, दधिमुखे तिम सोइ पवित्त, रति करे बत्तीस दीत्त, पर्वत दीठ ओक ओक भुवन, नंदिसर प्रासाद बावन, जपतां निरमल मन; प्रासाद दीठ अकसो चोवीश, श्री जिनराजना बिंब कहीश, संख्याओ जगदिश, सवि संख्याओ षट् हजार, चारसे अडतालीस जयकार, भव दव वारणहार. ||३|| ऋषभानन चंद्रानन भाण, वारिषेण वर्धमान जिन जाण, सासय जिनना ठाण, रुचक कुंडलद्विप कहंत, जिनघर चउ चउ तिहां प्रणमंत, जेहनो महिमां अनंत; साठ प्रासादे चउ चउद्वार, अवर सासय प्रासादे त्रिबार नमतां जय जयकार, शासन देवी सानिध्य करेवी, देवेन्द्र कुशल गुरूपाय सेवी, विद्या कुशल प्रणमेवी ॥४॥ , (104) श्री शाश्वता जिन स्तुति चार निक्षेपा जिनवर, केरा हुं प्रणमुं एक चित्तजी, ऋषभनाम ह्रदयमां धारो, भावो धरी भगवंतजी, द्रव्य घणे जेणे पूजा कीधी, पूज्या ते नर सारजी, पूज्याविण कोई मुक्ति न पामे, ते निश्चे निरधारजी.... १ ऋषभानन नामे जिन प्रतिमा, चंद्रानन चित्त धारोजी, वारीषेण नामे जिन प्रतिमा, श्री वर्धमान जुहारोजी, नंदीसर मेरू प्रभुत प्रतिमां, स्वर्ग मृत्यु पातालजी, सयल जिनने पाये लागुं, जिन पूजु त्रण कालजी .... २ जिन प्रतिमा जिन सरीखी कहीए, सूत्र उपांग माहेजी, छठ्ठे अंगे द्रौपदीए पूज्यां कुमति भूलो कांईजी
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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